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________________ ६३२ औपचारिक विया भवति, त जहा - दुघरतरिया तिघरंतरिया सत्तघरंतरिया उप्पलवेंटिया घरसमुदाणिया विज्जुयतरिया उहियासमणा, ते जाव - सनिवेसेसु' प्रामाss - फर यावर संनिवेशेषु 'आजीविया भवेति' आजाविका = गोशालक मतानुवर्तिनो भवति । ते किस्वरूपा । अत्राऽऽह-' तं जड़ा' तबथा'दुधरतरिया ' द्विगृहान्तरिका - एकस्मिन् गृहे भिक्षा गृहीचा अभिप्रहविशपेण गृहद्वय मतिक्रम्य पुनर्भिक्षा गृह्णन्ति, न निरतर न एकान्तर वा भिक्षा गृहूगन्तीति भाव, ' तिघरंत रिया' निगृहातरिका नीन् गृहानतिक्रम्य भिक्षा गृहणन्तीति निगृहान्तरिका, एव ' सत्तधरंतरिया ' सप्तगृहान्तरिका - समगृहान् परित्यज्य भिक्षा ग्रहण तीति, 'उप्पलवेंटिया' उत्पलन्तिका -उत्पलन्तानि नियमविशेषात् माहातया भैक्षत्वेन येषा ते उत्पल-वृत्तिका, 'घरसमुदाणिया ' गृहसमुदानिका गृहसमुदानम् = अनेकगृहे भिक्षा येषा ते गृहसमुदानिका, 'निज्जुयतरिया ' विद्युद तरिका - विद्यत्सम्पातेऽन्तर = मिक्षाग्रहणस्यावरोधो येषा ते विद्युदन्तरिका, विद्युति दीप्यमानाया भिक्षार्थं नाटन्तीति भाव, 'उहियासमणा ' उष्टिकाश्रमणा - उष्ट्रिका = मृत्तिकामयो भाजनविशेष, तत्र प्रविष्टा ये श्राम्यन्ति तपस्यन्ति त 'से जे इमे' इत्यादि । ( से जे इमे) ये जो (गामा - गर - जान - सनिवेसेसु) ग्राम आकर आदि स्थानों से लेकर सनिवेश तक में (आजीविया) गोशालक के मतानुयायी (भवति) होते हैं, ( त जहा ) जैसे- (दुघरतरिया) दो घर के अन्तर से जो भिक्षा लेते हैं, (तिघरतरिया) तीन घर के अन्तर से जो भिक्षा लेते है, (सत्तवरतरिया) सात घरों के अन्तर से जो भिक्षा लेते है, (उप्पलवेंटिया) कमल के नालों की जो भिक्षा करते है, (घरसमुदार्णिया) बहुत घरों से जो भिक्षा लेते है, (विज्जुयतरिया) बिजली चमकने पर जो भिक्षा नहीं लेते है, (उयासमा ) मिट्टी के किसी बडे वर्तन-नोंद आदि में प्रविष्ट हो कर जो तपश्चर्या करते 'से जे इमे' इत्याहि ( से जे इमे) तेथे ? (गामा गर-जाब - सनिवेसेसु) ग्राम साई२ माहि स्थानाथी साने सनिवेश सुधीमा (आजीविया) गोशासउना भतानुयायी (भवति) होय छे, (तजहा) नेवा (दुधरतरिया) में धरने अतर राभी ने लिक्षा से छे, (तिघरतरिया) नथु धरने अतर राभी ने लिक्षा ते छे (सत्त घरतरिया) सात धरौना मतरथी ने लिक्षा से छे (उप्पलवेंटिया) भजना नाजनी > लिक्षा ४रे छे, (घरसामुदाणिया ) धा घरोथी ने लिक्षा से छे, (विज्जुय तरिया) विभजी थम त्यारे ने लिक्षा बेता नथी, (उद्दियासमणा) भाटीना
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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