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________________ पीयूषषिणी-टीका र ५८ जल घरादिविषये भगवदगौतमयो सयाद ६३१ अणसणाए छेदेति,छेदित्ता आलोडयपडिकंता समाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा उक्कोसेणं सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उवत्तारो भवंति, तहि तेसिं गई, अद्यारस सागरोवमाड ठिई पण्णत्ता, परलोयस्स आराहगा, सेस त चेव ॥ सू० ५८॥ मूलम्से जे इमे गामागर जाव सनिवेसेसु आजीरिन्दति, 'छेदित्ता' छिचा 'आगेटयपडिक्ता' आलोचितप्रतिक्रान्ता , 'समाहिपत्ता' समाधिप्रामा , 'कालमासे काल रिचा' कालमास-कालावमरे काल कृत्या, 'उक्कोसेण' उत्कर्षेण 'सहम्सारे कप्पे' महस्रारे कल्पे-सहस्रारनामक अष्टमे देवलोक 'देवत्ताए' दव वेन 'उपवत्तारो भवति' उपपत्तागे भवन्ति उपयते, 'तहि तेर्सि गई' तत्र तेपा गति , 'अट्ठारस सागरोवमाः ठिई पण्णत्ता' अष्टादश सागरोपमागि स्थिति प्रजमा, 'परलोगस्म राहगा' परलोफम्यागधका , 'सेस त चेव' शेप तदेव ॥ मू० ५८॥ टीका-'से जे इमे' हयाति । ' से जे इमे' अथ य इमे 'गामा-गरकाल किचा) छेदन कर वे अपने पापा की आलोचना करते है, प्रतिक्रमण करते है, समापि को ग्राम होते है । तथा काल असर काल कर के (उक्कोसेण सहस्सारे कप्पे देवताए उववत्तारो भवति) कृष्ट आठवें देवलोक महस्रार कल्प म देवरूप से उपन्न होते हैं। (तहिं तेसिं गई) वहीं पर उनकी गति की गयी है। (अट्ठारस सागरोवमाइ ठिई पण्णता) इस आठने देवलोक म १८ सागर का स्थिति है । (परलोगस्स आराहगा, सेस त चेव) ये परलोक के आराधक होते है । अवशिष्ट पूर्ववत् समझना चाहिये । मू ५८ ॥ पत्ता कालमासे काल किच्चा) छेन रीने तसा पोते रेसा पापानी या ચના કરે છે, પ્રતિક્રમણ કરે છે, સમાજને પ્રાપ્ત થાય છે, તવા ડાલ અવસરે ४८ रीने (उक्कोसेण सहस्सारे कप्पे देवत्ताए उपवत्तारो भवति) Gट मामा सखसार १४भा १३५थी उत्पन्न थाय छ (तहिं तेसिं गई) त्या तेमनी गति मतापामा मापी (अट्ठारस सागरोवमाइ ठिई पण्णत्ता) मा मा8भा Rasमा १८ सासनी Gre स्थिति छ (परलोगम्स आराहगा, सेस त चेव) એઓ પરલોકના આધક હોય છે બાકીનું બધું પૂર્વપ્રમાણે સમજી લેવું मध्ये (सू ५८)
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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