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औषतिको पंचाणुव्वयाइ पडिबजंति, पडिवजित्ता वहि सीलब्वय-गुणवेरमण-पच्चरखाण-पोसहो-बवासेहिं अप्पाण भावेमाया बहूई वासाइ आउय पालेति, पालित्ता भत्त पञ्चस्खंति, बहइ भत्ताई तत खल समुरपनजातिरमरणा सन्त 'सयमेव ' स्वयमेव, 'पचाणुव्वयाइ' फवाणु नतानि 'पडियाजति' प्रतिपय त स्वाति, 'पडिजित्ता प्रतिपय 'सीलन्चयगुण-विरमण-पचक्रवाण-पोसहोवासेहि' शाइत-गुण-चिरमण-प्रत्यारयान-पोष घोपवासै 'अप्पाण भावमाणा' आत्मान भावयन्त , 'वह वासाइ' बहुनि बर्माण 'आयुय' आयुष्कं 'पालेति' पालयन्ति, पालित्ता' पालयियों 'भत्त' भक्त 'पञ्चक्खति' प्रत्याख्याति, 'यहइ भत्ताइ । वहनि भक्कानि 'अणसणाए' अनशनेन 'छेदात'
'तए ण समुप्पण्णजाइसरणा' इत्यादि।
(तए ण) तब (समुप्पण्णजाइसरणा समागा) जातिस्मरणज्ञानयुक्त के जीव, उस ज्ञान के प्रभाव से (सयमेव) स्वयं ही (पचाणुव्बयाइ) पाच अणुव्रतों को स्वीकार कर लेते हैं। (पडिवज्जित्ता वहहिं सीलब्धय गुण-वेरमण पञ्चक्खाण-पोसहो वासेहि) - स्वीकार कर शीलवतों से, गुणवतों से, हिंसादिक पापों के त्याग से, प्रत्याग्व्यानों से एवं पोपधोपवासों से (अप्पाण भावेमाणा) अपनी आत्मा को भावित करते हुए (बहूइ वासाइ)' अनेक वपों तक (आउय पालेंति) आयुष पालते हैं, (पालिता) आयुष पालकर वे (भत्त पञ्चक्खति) भक्तप्रत्याख्यान करते है । (सहइ भत्ताइ अगसणाए छेदेति) अनशन ।। अनेक भक्तों का छेदन करते हैं, (छेदित्ता आलोदयपडिवता समाहिपत्ताकालमास'
'तए ण समुप्पण्णजाइसरणा' त्यादि
तिए ण) त्यार (समुप्पण्णजाइसरणा समाणा) नति-भरण-ज्ञानयु। ते ०१ ज्ञानना प्रभाव 43 (सयमेव) पपोत (पचाणुव्वयाइ) पाय समताना स्वी४२ ४३1 से (पडिजित्ता बहहिं सीलव्यय-गुण-वेरमणपच्चक्साण-पोसहो-चवासेहिं) पी१२ ४शना शासनताथी, गुणवतोथी, हिंसा मा४ि पापना त्यागथी, प्रत्याज्यानाथी'तम पोषवापपासाथी (अप्पाण भावे-' माणा) पाताना भात्मानमाविता २२ (बहुइ वासाइ) भने ' ५२सा संधी (आउय पालेति) मायुष्य पाणे छ, (पालित्ता) आयुष्य पालीन तमा (भत्त पच्चक्सति) मतप्रत्याज्यान ४२, (बहइ भत्ताइ अणसणाए छेदेति) अनशनथी अने मतानु छन रे छे, (छेदित्ता आलोइयपडिक्कता समाहि'