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________________ पोयूपयपिणो-टीका र ५९ आजीयिक विपये भगवद्गीतमयो सपाद ६३ __ण एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणा वहइ वासाइ परियाय पाउ णित्ता कालमासे काल किच्चा उकोसेण अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवति । तहिं तेसिं गई, वावीसं सागरोवमाई ठिई, अणाराहगा, सेसं त चेव ।। सू० ५९ ॥ उष्ट्रिकाश्रमणा , 'ते ण एयारवेण विहारेण विहरमाणा' ते सलु एतद्रूपेण विहारण पिहरत , ' पहइ वासाइ परियाय पाउणित्ता' बहूनि वपाणि पर्याय पालयित्वा, 'कालमासे काल किया' कालमासे काल कृत्या, 'उकोसेण अन्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवति ' उ कर्पण अच्युते कल्पे दपत्वेनोपत्तारो भान्ति, 'तहिं तेसिं गई। तत्र तेपा गति , 'बावीस सागरोपमाड टिई' द्वाविंशति सागरोपमानि स्थिति । 'अणाराहगा' अनाराधका , 'सेस त चेव' शेष तदेव ।। सू० ५९ ॥ है, इस प्रकार जो अभिग्रह वाले है, (ते ण एयारूपेण रिहारेण पिहरमाणा बहूइ पासाइ परियाय पाउणित्ता कालमासे काल किच्चा उफोसेण अन्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भवति) ये सन इस प्रकार विहार करते हुए बहुत वर्षों तक इस पयाय को पालकर काल अवसर म काल करके उकृष्ट बारहवें देवलोक अच्युत कल्प म देव का पर्याय से उपन्न होते है । (तहि तेर्सि गई) वहीं पर उनकी गति होता है । (वावीस सागरोवमाइ ठिई) २२ सागर की इनकी स्थिति यहा होती है । (अणाराहगा) ये सन अनाराधक होते है । (सेस त चेव) अपशिष्ट पूर्ववत् समझना चाहिये । सू ५९ ॥ કેઈ મોટા વાસણ–ઠી આદિમાં પ્રવિણ થઈને જે તપશ્ચર્યા કરે છે, આ પ્રકા२ना मलियारे, (ते ण एयारूपेण निहारेण विहरमाणा वहृइ वासाइ परियाय पाउणित्ता कालमासे काल किच्चा उक्कोसेण अच्चुए कप्पे देवत्ताए उववत्तारो भाति) मा गधा या प्रकारे विडार ४२॥ ४२ता घर परसे। सुधी આ પર્યાયને પાળીને ઢાલ અવસરે કોલ કરીને ઉત્કૃષ્ટ બારમા અશ્રુત કપમાં पनी पर्यायथी उत्पन्न याय (तहिं तेसिं गई) या तभनी गति थाय छ, (वावीस सागरोनमाइ ठिई) मा सानी भनी स्थिति त्या डाय छ (अणारागा) 24n धा मना२।५४ सय छ (सेस त चेत्र) मानु मधु पूर्व પ્રમાણે સમજવું જોઈએ (સૂ ૫૯)
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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