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उत्तराध्ययन भाग दूसरे (अभ्य. ४ से १४ तक ) की विषयानुक्रमणिका
पृष्ठ चौथा अध्ययन १ जराग्रस्तको शरणका अभार २ जराग्रस्तको शरणके अमात्र विषयमे अनमल्लका रप्टान्त ४-१६ ३ धनलोभीके नरकगमनका वर्णन
१७-१९ ४ धनकोभ ऊपर दुर्घट चोरका दृष्टान्त
१९-२२ ५ किये हुए कम विना भोगे निहत्त नहीं होते है.
२२-२४ ६ अपने कर्मो के भोगके विपयमें दुर्वृत्त चौरका दृष्टान्त २४-२६ ७ पापकर्मकी प्रशसा अनेकानेक अनयों का कारण बनती है उस विषयमे दुर्मति चोरका दृष्टान्त
२६-२८ ८ कर्मके फळ भोगते समय बाधयोंकी असहायता
२८-३० ९ कर्मके फल भोगते विषयमे गालिनको ठगनेवाले वणिक्का दृष्टान्त
३१-३६ १० द्रव्यसे त्राण-रक्षणका अभाव
३७-३९ ११ द्रव्य रक्षण नहीं कर सकता है इस विषयमें पुरोहित पुरका द्रप्टान्त
४०-४१ १२ सम्यग्दर्शनादिकको प्राप्त करके भी मोहाधीन जीव उसका
नहीं पानेवाला जैसा होता है, इसपर धातुवादी पुरुषका दृष्टान्त ४२-४३ १३ प्रमाद नहीं करनेका उपदेश
४३-४६ १४ प्रमादके त्यागके विषयमे अगडदत्तका दृष्टान्त
४६-९० १५ निर्जराके लाभके लिये शरीरका पोपण श्रेयस्कर है इस विषयमें मूलदेव राजाका दृष्टान्त
९१-१०१ १६ गुरुकी आज्ञाके पालनसेही मुनिको मोक्षकी प्राप्ति होती है, इस विषयमे अश्वदृष्टान्त
१०२-१०६ १७ गुरुकी आज्ञामे प्रमादके त्यागनेका उपदेश
१०६-१०७ गुरुकी आज्ञामे प्रमादके विपयमे ब्राह्मणीका दृष्टान्त
१०८-११२