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६४ द्विधागतिप्राप्त वाल-अज्ञानीके उद्धारकी दुर्लभताका वर्णन २६७-२६८ ६५ वालत्वके परिवर्जनसे मनुष्यगतिके लाभका वर्णन २६९ ६६ मनुष्य योनि कौन पाता है ? उसका कथन ६७ देवगतिमाप्तिका वर्णन
२७१-२७२ ६८ देवगतिप्रातिका उपदेश
२७३-२७४ ६९ देवसुख और मनुष्यमुखौंको समुद्रके दृष्टान्त द्वारा तुलना २७५-२७८ ७० मनुष्य सम्बन्धी कामभोगोंसे निवृत्त होनेवाले के गुणका वर्णन २७९-२८० ७१ काम निवृत जीवको देवलोकसे चवनेके पीछेकी गतिका वर्णन
२८१-२८२ ७२ धीरताका स्वरूप और उसका फलका वर्णन २८३-२८५
___ अष्टम अध्ययन ७३ कपिल मुनिके चरित्रवर्णन
२८६-२९८ ७४ कपिलचरित वर्णनमे ससारकी असारताका वर्णन २९७-३०० ७५ दोप प्रदोपोसे मुक्तिके उपायका वर्णन
३०१-३०२ ७६ परिग्रहमे शुद्ध बने हुवेके दोषोंका और केवलीके परिग्रह
त्यागीके गुणों का वर्णन ७७ कामभोगादि अधीर पुरुषोंके लिये दुस्पन और सुनतधारियों के लिये सुत्यज होनेका कथन
३०६-३०८ ७८ बाल-अज्ञानीके नरकगमनका वर्णन
३०९-३१० ७९ माणिवघसे निवृत्त बननेवालों के मोक्षमाप्तिका वर्णन ३११-३१३ ८० प्राणियोंमे दण्डनिषेधका वर्णन
३१४ ८१ एपणासमिति वर्णनमे रसौमे अगृद्ध रहनेवालेके कर्तव्यका , कथन और अश्रमणके लक्षणोका वर्णन एव उनकी गतिका वर्णन
३१५-३२१ ८२. लोभके वशवत्र्तीके आत्माका दुष्पूरकत्व
३२१-३२२ ८३ असतोपके विषयमें स्वानुभवका वर्णन
३२३-३२४ ४ स्त्रियों में गृद्धिभावनिषेधका और उनके त्यागका वर्णन ३२४-३२९