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औपपानिको गइया हयगया एव गयगया रहगया सिवियागया सदमाणियागया, अप्पेगइया पाय-विहार-चारिणो पुरिस-वग्गुरा-परिक्खित्ता महया उकिहि-सीह-णाय-बोल-कलकल-रवेणं पक्खुभिय-महासमुद-व-मूयं पिच करेमाणा चंपाए णयरीए मज्झसिरियागया सदमाणियागया' हयगता ग्य गजगता रथगता गितिकागता स्याटमानि कागता -तर शकटोपरि दत्ता गिनिन म्यरमानिका, 'अप्पेगडया' अप्येकके 'पापविहार-चारिणो' पादविहार चारिग 'पुरिसरगुरापरिविश्वत्ता' पुरुषवागुरापरिमिता - पुरुषसमूहन परिवेष्टिता , 'महया' महता 'उकिद्वि-सीहणाय-बोल-कलकल-रवेण' उत्कृष्टि-सिंहनाद-गोल-कलकल - रवण - उकृष्टि -आनन्महा पनि , सिंहना प्रसिद्ध , बोल =चयक्तिसहितो ध्वनि , कलफल चयक्तिरहितो ध्वनि , एपा समाहार , तदेव यो ख स तथा तेन, 'पक्खुभिय-महासमुद्द-वभूय पिर' प्रभुभित-महासमुद्र-वभूत मिव-प्रक्षुभितमहासमुद्रस्य यो रवभूत =सजातगदस्तमिव तहत् नगर 'करेमाणा' कुवेन्त • इसी प्रकार कितनेक हाथी पर आरूढ़ हुए, (रहगया) कितनेक रथों पर बैठे, (सिबियागया) कितनेक पालग्विया मे चढे, (सदमाणियागया) कितनेक बहेलियों-पालकीविशेष मे बैठे, (अप्पेगइया) तथा कितनेफ (पुरिस-वग्गुरा-परिक्खित्ता) पुरुषों के समूह से घिरे हुए होकर (पाय-विहार-चारिणो) पैदल ही निकले, ये सभी (महया) महान् (उकिट्रि-सीहणाय-बोल-कलकल-रवेण) उकिष्ट्रि-उत्कृष्टि-अतिशय आनन्द जनित ध्वनि से, (सीहणाय) सिंहनाद-सिंहनाद से, 'बोल' व्यक्तवर्णयुक्त ध्वनिसे, तथा 'कलकलरव'-अ यक्त पनि से (पक्खुभिय-महासमुद्द-रवभूय पित्र) चम्पानपरी को प्रक्षु
सवार थया (एव गयगया) जा रमाउ हाथी५२ मा३८ थया (रहगया) *४ २५ ०५२ मेह। (सिबियागया) 32सा पासमीयामा यया (सदमाणियागया) उटसा पारमाविशेषामा मेही, (अप्पेगइया) तथा टमा
परिस-घरगुरा-परिक्सित्ता) याना टासाथै धीमे-धीमे पग (पाय बिहार-चारिणो) पेहता नान्या, मा मधा (महया) महान् (उक्किद्वि-सीह माय-बोल-कल कलरवेण) 'उस्किट्ठि' अष्टि-मतिशय मान नितनिधी, सीहणाय) सिखना-सिनाथी, (पोल) व्यqयुक्त ध्वनिथी तथा (कल क्लरव) ५०यात पनिथी (पक्खुभिय-महासमुद-रवभूय पिव) या नगरीने
जय