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________________ पीयूषयपिणो टीका व ३९ प्रवृत्तिव्यापृतात कृणिकस्य भगवदागमनज्ञानम् ३६३ मूलम् - तए णं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लट्टे समाणे - तु - जाव - हियए हाए जाव अप्प - महग्घा भरणा टीका- 'तए ण से पवित्तवाउए' इत्यादि । 4 " f 'तएण से पत्तियाउए ' तत स स प्रवृत्तित्र्यापृत = भगवद्विहारादिवृत्ता`तनिवेदनऽधिकृत, ‘इसीसे कहाए लट्टे समाणे ' अस्या कयाया लघार्थ सन् 'हट्ठतुटु-जाव-हियाए ' हष्ट-तुष्ट-यावहृदय हाए जाव अप्प महग्घा भरणा लकिय सरीरे' स्नातो यावन्महाघाभग्णाऽल्डकृतगर र 'सयाओ गिहाओ' स्वकाद् गृहात् 'पडिणिकर चुकने बाद फिर उस आगत जनसमूहने (दति नमस्सति) वन्दना एवं नमस्कार किया, (वदित्ता णमस्सित्ता पच्चासण्णे णाःदूरे सुस्सुसमाणा णमसमाणा अभिमुहा विएण पजलिउडा पज्जुवासंति) वदना एव नमस्कार करने के पश्चात् भगवान से न अतिसमीप मन न अतिदूर हो उनके सामने उचित स्थान पर बैठ कर वे सब विनयपूर्वक हाथ जोडकर सेवा करने लगे || सू ३८ ॥ 7 'तएण से पवित्तिवाउए' इत्यादि । I ( } (तए पा) इस के बाद ( से पवित्तिवाउए) वह भगवान के विहार आदि के समाचार लाने मे नियुक्त किया हुआ व्यक्ति, (इमी से कहाए) इस कथासे - भगवान के आगमन के वृत्तात से (लद्धडे समाणे) परिचित होकर, (हट्ट -तदु-जाव - हियए) अपने अन्तकरण में विशेषरूप से हपित एव एतुष्ट हुआ, फिर उसने ( व्हाए जात्र अप्प - महग्घा - भरणा - लकिय - सरीरे ) स्नान किया, पश्चात् थोडे भभू (वति णमस्सति) वहना तेभन नमस्कार र्या, (वदित्ता णमरिसत्ता त्रासणे णाइदृरे सुस्सममाणा णमसमाणा अभिमुद्दा विणण पजलिउडा पज्जु वासति) पहना तेभन नमस्कार यो पछी लगवानथी बहु दूर नहि तेभ महु નમીપ નિડુ અમ તેમની મામા ઉચિત સ્થાન પર બેસીને તે બધા વિનયપૂર્વક હાથ જોડીને સેવા કરવા લાગ્યા (સૂ ૩૮) 'तर ण से परित्तिवाउए' इत्याहि (तए ण) त्यार पछी (से पनित्तिवाउए) ते लगवानना विहार माहिना सभाथार सावना भाटे नियुन्त उरेस भागुस ( इमीसे कहाए ) या पातथी - भगवानना आगभनना वृत्तान्तथी (लट्टे समाणे) परिचित थर्धने (हट्ट तुट्ट जाये हियए) पोताना अत उरेशुमा विशेषश्यथी अर्पित तेभन सतुष्ट थ्यो पछी तेथे (व्हाएजान अप्प महग्घा भरणा-लकिय सरीरे) स्नान यु पछी थोड़ा लारवाणा तथा
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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