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________________ पोपfर्पणी-टोका सृ ३८ जनाना भगवद्दर्शनार्थं गमनम् ३६१ मज्झेणं णिग्गच्छति, णिग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभट्टे चेडए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामते छत्ताईए तित्थथराइसेसे पासनि, पासित्ता जाणवाहणाई ठवेति, ठवित्ता जाणवाहणेहिंतो पञ्च्चोरुहति, पञ्च्चोरुहित्ता जेणेव चम्पानगग महाकोलाहलमया कुर्वत, 'चपाए णयरीए' चम्पाया नगया 'मज्झ मज्झेण' मनमन सर्वतोयमार्गग 'णिग्गच्छति' निर्गच्छन्ति, 'णिग्गच्छित्ता' निर्णय' जेणेव पुष्णभद्दे चेड' यौन पूरीभद्र चैयम्, 'तेणेच उत्रागच्छति' तनेोपागच्छन्ति, 'उवागच्छित्ता' आग य, 'समगम्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामते ' श्रमणस्य भगवतो महान रस्य अदूरसमा 'उत्ताईए तित्वयराइसेसे पासति' उपादान् सार्थकगतिशेषान् तीर्थंकरातिशयढ्योतकानि कानिचिच्छनादानि चिह्नानि पश्यन्ति, 'पासित्ता' दृष्ट्वा ' जाणवाहणार ठर्वेति' यानवाहनानि स्थापयन्ति, 'ठवित्ता' स्थापयित्वा 'जाणवाहणेर्हितो भित महासमुद्र के महाध्वनेि से मानो युक्त करते हुए, (चपाए णयरीए) उस चपा नगर क (मज्झमज्झेण) ठाक नाचो याच क मार्ग से (णिगच्छति) निकले, (णिग्गच्छित्ता) ये सन निकल कर ( जेणेच पुण्णभद्दे चेइए ) जहा पर वह पूर्णभद्र नामका उद्यान था (तेव उवागच्छति) वहाँ पर पहुँचे, (उवागच्छित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामते उत्ताईए तित्थयराइसेसे पासति) वहाँ पहुँच कर उन्होंने भगवान् महाचीर क न अतिदृर और न अनिनिकट तार्थंकरों के अतिशय स्वरूप छत्र आदिकों को देखा, ये उत्रादक तीर्थकर के अतिशय द्योतक चिह्न मान गये हैं, (पासिता जाणवाहणाड ठवेंति) इन चिन्हों के देखते ही उन सनों ने अपने २ यानवाहनादिकों को वहाँ रोक प्रभुमित भडासमुद्रना महाव्वनिथी नभ युक्त डरता होय तेभ (चपाए जयरीए) ते यथा नगीनी (मज्झमज्झेण) मरामर वयोवस्थना भागथी (निगच्छति) नीउज्या (णिग्गच्छित्ता) ते मवा नीडजीने (जेणेव पुण्णभद्दे चेइए) ल्या ते शुलद्र नाभनु उद्यान हेतु (तेणेन आगच्छति) त्या महान्या, (उपागच्छत्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अदूरसामते उत्ताईए तित्ययराइसेसे पासति) त्या पोथीने तेथेोमे ભગવાન મહાવીશ્થી બહુ કર નહિ તેમ તીથ કાના અતિશયસ્વરૂપ છત્ર આદિને જોયા, આ ત્ર આર્દિક તીથ કાના અતિશયદ્યોતક ચિહ્ન મનાય छे. (पासिता जाणवाहणाइ ठोंति ) मे थिहोने लेता જ તે બધાએ પાત
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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