________________
३५८
औपपातिसू
41
अगाराओ अणगारियं पव्वइस्सामो, [अप्पेगइया ] पचाणुव्वइथं सत्तसि+खावय दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवजिस्सामो, अप्पेगडया जीयमेयति कट्टु पहाया कयवलिकम्मा कय- कोउय-मंगलनिरतिपूर्वक मुण्डिता - पृतना मम्पय 'जगाराओं अणगारिय पञ्चम्सामो' अगा शद=गृहाद् अनगारिंकता = साधुच प्रनजिध्याग = प्राप्स्याम - अनगारा भविष्याम, 'अप्पेगइया ' अप्येकके ' पचाणुव्त्रइय सत्तसिक्खा दुसह गिरिधम्म पडिवज्जिरसामी ' पञ्चानुत्रतिक सप्तगिक्षात्रतिक द्वादशविध गृहिधर्म प्रनजिन्याम, 'अप्पेगडया' अप्येकक 'जिण - भत्ति - रागेग ' जिनभक्तिरागेण, 'अप्पेगइया' अप्येकक, 'जीयमेयति कट्टु ' जातमेतदिति कृत्वा -- कुलाचारोऽयमिति मत्ला, 'व्हाया ' स्नाता' कल्लिम्मा' कृत लिभाग ' कय- कोजय-मंगल- पायच्छित्ता' उत- कौतुक - महल- प्रायश्चित्ता -
1
इस्सामो) सावध व्यापारों से सर्वथा विरत होकर, कालचनपूर्वक गार्हस्थिक अवस्था का परित्याग कर अनगार बनेगे - इस प्रकार की भावना से, तथा कितनक- ( पचाणुव्वय सिसिक्खाबय दुसविह गिरिधम्म परिवज्जिस्सामी) पाच अणुव्रत एवं सात शिक्षाव्रत के भेद से १२ भेदरूप गृहस्थ के धर्म को स्थाकार करेग- इस भावना से, (अप्पेगइया) कितनेक (जिणम तिरागेण) जिनद्र का भक्ति करेंगे इस प्रकार भक्ति के अनुराग से, (अप्पेगइया,) कितनेक (जीयमेयत्ति नहु) यह हम लोगों का कुगचार है-इस प्रकार मान कर, ( पढाया) स्नान किये, ( कयपलिकम्मा) काक को अन्नादि दा रूप पल्किर्म किये, (कय-कोउय-मंगल- पायच्छित्ता) दुस्वमादि निवारण क रिय इरसामो) सावध व्यापारोथी सर्वथा विरत थर्धने देशलु यन पृव ગાડું સ્થિક અવસ્થાને પરિત્યાગ કરીને અનગાર અનશુ-એ પ્રકારની ભાવ नाथी, तथा नेटला ( पचाणुश्य सत्तसियावइय दुवालसहि मिहिधम्म पि वज्जिसामो) पाय आयुक्त तेभन भात शिज्ञानतना मेथी १० लेह ३५ गृहस्थना धर्मनो स्वीकार ४२शु शेवी भावनायी, ( आयेगइया) डेटला ( जिगमत्तिरागेण ) किनेन्द्रनी लडित जरशु से अजरनी लतिना अनुगगथी, • ( अप्पेगइया) डेटला ( जीयमेयति कट्टु ) या अमारो सायार के अज zal mudrail, (ogjai) zolla kål (49-af-41) 3191a multā अन्न आदि दानय सिन्भी, (कय - कोय-मगल-पायच्छित्ता) हु स्वप्नाहि निवारणने भाटे भसी तिसर हही योगा माहि धारण दरी, ( सिरसा क्ठे