SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 375
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पीयूषयपिणो-टीका र ३१ महावीरस्यामि शिष्यवर्णनम् चिता-पसग-पसरिय-वह-बंध-महल्ल-विउल-कल्लोल-कलुणविलविय-लोभ-कलकलंत-बोलबहल अवमाणण-फेण-तिव्यकालायामाह-'सजोग-विओग-बीड-चिंता पसग पसरिय बह-वध महल-विउल-कलोलकलुण विलविय-लोभ-कलफलत-चोल बहुल' सयोग-वियोग वाचि चि ताप्रसङ्ग-प्रसृतउप-बन्ध-महाविपुल कलोल-करण विरपित-लोम-कलकलायमान-मोल-(ध्वनि) बहुलम् सयोगवियोगा =अप्रियगदादिसयोग प्रियशन्दादिषियोगा एव वाचय =तग्गा यत्र सागरे स सयोगवियोगमाचि , चिन्ताप्रमग पुन पुनश्चिन्ताप्रानि म एर प्रसृत प्रसरण यत्य स तथा, बमा हननानि, उन्धा =मयमनानि, त एव महान्तोटापा, पिपुला =विस्तीगा कलोला -महोर्मयो यत्र स वधर धमहाविपुलकल्लोल, करुणानि-करुणरसजनकानि विलपिनानि=पिलापरचनानि, लोमा लगेमसम्भूताऽऽमोगाश्चत ए क्लायमाना बोला = वनयो बहुग यत्र स तया, तत म्योगवियोगनाचिश्वामौ चिन्ताप्रसङ्गप्रसृतश्च तथा वन्यमहापिपुल फल्लो श्रामौ करुणविलपितलोमकलकल्योल्पहुल ब स तथा, त तादृश, योगादितरअतरङ्गित चितापिस्ताण वधनन्धकल्लोल करुणविलापलोभमभूताको प्रचण्डनाइनादितमियर्थ । पुन कथन्भूतम् । 'अवमाणणफेणतिब्बग्विसणपुलपुलप्पभूयरोगवेयणपरिभवविणिवाय(सनोग-विभोग-बीड-चिंतापसग-पसरिय-वह उप-महल विउल-कलोल-फलुण-विलविय लोभ-कल कलत-बोल-बहुल) सयोग=अमनोन शानिकों का सनध, पियोग-मनोज गन्नातिनका अभाव, ये जिसमे वाचि-कल्लोल है, चिता जिसका विस्तार है, उध एव धन ही जिसम विस्तृत तग्गे ह, करणारसजनक विलापपचन एव लोभ से नभृत आक्रोशपचन, ये हो जिसी बटुल फ्लकलायमान व्वनिया है-गर्जना हे, (अपमाणण फेण-तिव्व-खिसण पुलपुलप्यभूय रोगवेयण-परिभव-विणियाय फरस-परिसणा-समावडिय पढिण-कम्म-पत्थरतरग रगत निच्चमच्चुभय तोयपट्ट) अपमान हा जिमम फेनगशि है। दु सहनिंदा, निर (सजोग विओग वीइ चिंतापसग पसरिय-यह वध महल्ल निउल-कल्लोल-कलुण निलवियलोभ-कलफलत-बोल-बहुल) योग-मनने नगमे तवा शह माहिाना સબ વ, મનને ગમે તેવા શબ્દ આદિકોને વિયેગ, એ જેમા વીચિ-લહેર છે, ચિતા જેને વિસ્તાર છે, વવ તેમજ બ ધન જ જેમાં મોટા મજા છે, કરૂણાજનક વિલાપવચન તેમજ લોભથી ઉત્પન્ન થયેલ આક્રોશવચન से मनी मोटी उससाट पनिया ना छे, (अनमाणण फेण तिव्य सिंमण-पुल्पुल-पभूय-रोगवेयण-पम्भिव-विणिवाय-फरस - धरिमणा - समावटिय परिण-कम्म-पत्थर- तग्ग-रगत-निश्चमन्चुभय-तोयपट्ट) अपमान भा जीना
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy