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________________ ३१० औपपातिकमंत्र - - - - - मूलम्-संसारभउधिग्गा भीया जम्मण-जर-मरणगभीर-दरख-पखुभिय-पउर-सलिल सजोग-विओग-बीइ ___टीका-भगवत श्रीमहावीरस्वामिनोऽनगारा पुन कानुशार हुत्याह- ससार भविग्गा' इत्यादि । ससारगयोद्विग्ना -चतुर्गतिभ्रमणलक्षणसमाग्मयादुद्विग्ना = याकुल, 'केनोपायेन ससारसागरात् तरिष्याम' इतिचि ताजाल-कुला इत्यर्थ । अत एव 'भीया'-मीता = भययुक्ता , अस्य तरन्ती यत्रान्चय । मूनकार ससारमागर वर्णयति-'जम्मण-जर-मरण करण-गभीर दुक्ख पक्खुम्भिय पउर सलिल' जम-जरा मरण करण-गम्भीर दुख-प्रभुमित प्रचुर-सलिलम्-ज मजरामग्णान्येर करणानि-साधनानि यस्य तत तथा, तदेव गम्भीर दु ख-अगाददु स, तदेव प्रसुमित प्रचलितम् , प्रचुर=विपुल सलिल जल यन्भिन् स जम जरा-मरण-करण-गम्भीर-दुख-प्रक्षुभित प्रचुरसलिलस्त, पुन कादृश ससारसागरम् ? इत्या 'ससारभउबिग्गा' इत्यादि। भगवान महावीर के अनगार और भा कैसे थे । इस बातको प्रकट करने के लिये सूत्रकार इस सूत्रकी प्ररूपणा करते हुए कहते है कि भगवान महावीर स्वामी के ये अन गार (ससारभउविग्गा) चतुर्गति मे भ्रमण करने रूप ससार के भय से उद्विग्न थे, 'किस उपाय से हम लोग इस अथाह ससारसागर से पार होंगे' इस प्रकार का चिन्तवन सर्वदा करते रहते थे। (भीया) इसलिये ये सारभीरु थे । अब यहा से यह ससारसागर कैसा है। इस बात का नाचे लिखित विशेषणों द्वारा सूत्रकार स्पष्ट करते है-(जम्मग-जर-मरण करण-गभीर-दुक्ख-परखुभिय-पउरसलिल) जम, जरा और मरण, ये ही जिसके साधन है ऐसा प्रगाढ दुख ही जिसमे उछलता हुआ अगाध जल भरा हुआ है, तथा 'ससारभउचिम्गा' त्या ભગવાન મહાવીરના અનગાર ફરી પણ કેવા હતા ? તે વાતને પ્રકટ કરવા સ્રરકાર આ સૂત્રની પ્રરૂપણ કરતા કહે છે કે-ભગવાન મહાવીર સ્વામીના मनगार (ससारभउचिग्गा) यगतिमा भ्रमण उरावा३५ स साना ભયથી ઉદ્વિગ્ન હતા, “કયા ઉપાયથી અમે આ અગાધ સ સારસાગરથી પાર यस प्रजानु थितन सर्व उर्या उता उता (भीया) मेथी तो સ સારીરૂ હતા હવે અહીંથી આ સ સારસાગર કેવો છે ? તે વાત નીચે समेत विशेष द्वारा सूना पट उरे छ-(जम्मण जर मरण करण गभीर दक पाखन्भिय पउरसलिल) म, १४२॥ मने भ२६१, मे रे साधन Eવા પ્રગાઢ દુ ખ જ જેમાં વિસ્તારથી ઉકળતા પાણીના જેમ ભરેલા છે તથા
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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