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________________ पीयूषयषिणी-टीका सू २५ भगयदन्तेयासिवर्णनम् १७७ खंतिप्पहाणा मुत्तिप्पहाणा विज्जापहाणा मंतप्पहाणा वेयप्पहाणा वभप्पहाणा नयप्पहाणा नियमप्पहाणा सञ्चप्पहाणा सायप्पहाणा दयनिरोध , तत्प्रधाना -जायावविधमटवर्जिता , 'लायाप्पहाणा' लाघवप्रधाना , लाघनद्रव्यतोऽपोपधिव भारतो गौरवप्रयत्याग, तप्रधाना ।' खतिप्पहाणा' क्षान्तिप्रधाना - क्षान्ति -क्रोनोन्यनिरोप -तत्प्रधाना । 'मुत्तिप्पहाणा' मुक्तिप्रधाना -मुक्तिोभोदयनिरोध , तत्प्रधाना , निर्लोभा इत्यर्थ । 'विनापहाणा' विद्याप्रधाना -पेदन विद्या-ससाधना रोहिणीप्रनमिप्रभृतिर्देव्यघिष्टिता सा प्रधान येपा ते विद्याप्रधाना । 'मतप्पहाणा' मन्त्रप्रधाना, 'यप्पहाणा' वेदप्रधाना -वेद्यते ज्ञायत जीवाजीपातिस्वरूपमेभिरिति वेदा - आचारागादय आगमा, तप्रधाना, 'यभप्पहाणा' नह्मप्रधाना , ब्रह्म-ब्रह्मचर्य-कुगलानुष्ठान त प्रधाना । 'नयप्पहाणा' नयप्रधाना-नयति वोधयति अनऊधमात्मपरतुन एकागम् इति नया -नैगमादय सप्त, तत्प्रधाना , 'नियमप्पहाणा' नियमप्रधाना , नियमो द्रव्य-क्षेत्रकालभावतो विविधाभिग्रहग्रहणम् तत्प्रधाना , 'सचप्पहाणा' सयप्रधाना -जावाअर्थात् जायादि आठ प्रकारके मदसे रहित थे। (लायबप्पहाणा) द्रव्यसे अल्पउपधियुक्त होने कारण तथा भावसे गौरवनयरहित होनेके कारण प्रधान थे । (खतिप्पहाणा) क्रोधके उदयका निरोध करनम प्रधान ये । (मुत्तिप्पहाणा) लोभ के उदयका निरोध करने म प्रधान थे । ( विजापहाणा ) रोहिणी प्रज्ञप्ति आदि विद्याओंसे प्रधान थे। (मतप्पहाणा) मनसे प्रधान थे। (वेयप्पहाणा) आचाराङ्ग आदि शास्त्रों से प्रधान ये । (वभप्पहाणा) ब्रह्मचर्य से प्रधान ये । (नयप्पहाणा) नैगमादि सात-नयोंके स्वरूप निरूपण करनेम प्रधान थे। (निगमप्पहाणा) द्रव्य क्षेत्र काल भावसे विविध प्रकार के अभिग्रह करनेम प्रधान थे। (सन्चप्पहाणा) जीवा२ना महथा २डित ता, (लाघपप्पहाणा) द्रव्यथा 4-6धिवाणा पाना ४२ऐ तथा माथी त्रय गौरपथी २डित पाना २णे प्रधान उता (सति प्पहाणा) अधना यना निरोध पामा प्रधान त, (मुत्तिापहाणा) सामना उहयना निरोध ७२वामा प्रधान ता, विजापहाणा) लिपी अज्ञप्ति माहि विधाममा प्रधान उता (मतप्पहाणा) मत्रोथी प्रधान उता (वेयप्पहाणा) मन्या माहि स्त्रीथा प्रधान उता (वभप्पहाणा) प्रहाययथा प्रधान डता, (नयप्पहाणा) नाम माहि सात नयाना २१३२ नि३५४४ ४२वामा प्रधान उता (नियमप्पहाणा) द्र०य-क्षेत्र-स-माथी विविध जान मलि अड ४२पामा प्रधान उता, (सन्चापहाणा) ७१ २04 याहि पाना
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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