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________________ १४० औपपातिकमत्रे - - - लागर-संड-बोहए उहियम्मि सूरे सहस्सरस्तिम्मि दिणयरे तेयसा जलंते,जेणेव चपाणयरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेडए,जेणेच वणसडे, शोक =प्रसिद्धवृक्ष -नस्य प्रकाश =प्रभा, म रक्ताडगोकप्रकार सच किंशुक्=पापुष्प, शुकमुख च, गुना रक्तग फलविय-नन च रक्ताभाग, तपा यो गगरक्तवर्णे तेन सदृश -समान तस्मिन-तत्तुन्य नियुक्त, 'मगगर-सड-गोहए' कमलाऽऽकर पण्ट-बोधके-कमलानामाकग कम गेपत्तिभ्यानाति नटागान्य , तयु मगर यानि पण्डानि-कमल पनानि, तेपा बोरक विकाशक तस्मिन-कमल पारिका कारिगा यर्थ , 'उट्ठियम्मि' उथिते-उदिते 'मरे' मय, पुन कीदृगे' 'सहम्सरसिमि दिणयर तेयसा जलते' सहस्ररश्मौ दिनकरे तेजसा जलति-महस्र-महस्रपरिमिता रम्मय मिग्णा यस्य स तस्मिन् तादृशे दिनकरे--दिवसकारके, तेजसा-विग्णपुख्नेन, जलति-जाजन्यमान सति, 'जेणेव चपा णयरी' यनैव चम्पा नगरी वर्तत इति शेष । 'जेणेप पुण्गभदे चेदए' यत्रैव पूर्णभद्र चैयमुद्यानमस्ति । 'जेणेव पणसडे' यत्रैच उनपग्द , 'जेणेव असोगवरपायवे' यत्रैवाशोकवरपादप , 'जेणेव पुढविसिलापट्टए' यौन पृथ्वीसुयमुह-गुजद्धराग-सरिसे कमलागर-सड-पोहए ) रक्त-अशोक के प्रमागतुल्य, पलाशपुष्प के समान, शुक क मुग के समान और गुजा क आधे भाग की ललाई के समान, कमलवना को विकसित करनेवाला प्रभात होने पर, (उठियमि सूरे) आकाश मे सूर्य का उदय होने पर, और पश्चात् (सहस्सरसिमि दिणयरे तेयसा जलते) सहस्रकिरणवाला दिनकर जब अपने तेजसे आकाश में चमकने लगा तब (जेणेव चपाणयरी जेणेव पुण्णभहे चेठए जेणेव वणसडे जेणेव असोगवर पायवे जेणेव पुढवीसिलापट्टए तेणेव उवागच्छद) जहाँ वह चपानगरा था, जहाँ वह पूर्णभद्र उद्यान था, जहाँ वह अशोक वरवृक्ष था, जहाँ पृथिवाशिलापटर था, वहा गुजद्धराग-सरिसे) २४ मशाइनी प्रासमान,शिशु-सुडाना पुण्य समान, શુકમુખ-પોપટના મુખ્ય સમાન, અને ગુજાના અર્ધભાગની લાલાશ સમાન (कमलागरसडबोहए) मसानो पनाने भासावाणु अमात यता (ट्ठियम्मि सूरे) माशमा सूर्य य यता भने पछी (सहस्सरसिमि दिणयरे, तेयसा जलते ) सहसडिवाण। सूर्य न्यारे पोताना तप माशमा यम । माया त्यारे, (जेणेव चपाणयरी जेणेव पुण्णभद्दे चेइए जेणेव वणसडे जेणेव असोगवरपायवे जेणेव पुढवीसिलापट्टए तेणेव उवागच्छइ) या त य,पानगरी હતી, જ્યાં તે પૂર્ણભદ્ર ઉઘાન હતું, જ્યા તે અશક વરવૃક્ષ હતુ અને જ્યા
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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