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पीयूषषपिणी टीका सू २२ पूर्णमद्रोदयाने भगवदागमनम्
१३९ मूलम्- तए णं समणे भगव महावीरे कलं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पल-कमल-कोमलु-म्मीलियम्मि अहपडुरे पहाए रत्तासोग-प्पगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्वराग-सरिसे कम
टीका-'तए ण' दयादि । ततस्तदनन्तर पल अमगो भगवान् महानार 'क' कन्ये द्वितीयदिवसे 'पाउप्पभायाए रयणीए' प्रादुष्प्रभाताया प्रकटाभूत प्रभाताया रजन्या 'फुल्लुप्पल-कमल कोमलु म्मीलियम्मि'फुलो-रपल कमल कोमलोन्मारिते-फुल्ल विकसित च तत्-उत्पल-पम, कमलश्च-चित्रमृग -हरिणविशेष , तयो कोमल मृटु कम् , उन्मीलितपत्राणा नयनयोश्चोन्मीलन यस्मिन् तत्तथा तम्मिन , इन पभातविशेषणम् । 'अह' अथ-अनन्तर-रजनीपर्यवसानाऽनन्तरम्-‘पडुरे' पाण्डुर-शुक्ले 'पभाए' प्रभात प्रात काले, अथ सूर्यविशेषणान्याह-'रत्तासोग' इत्यादि । 'रत्तासोग पगास किंसुय-सुयमुह-गुज
राग-सरिसे' रक्ताडगोक-प्रकाश-किंशुक शुकमुम - गुजाऽर्द्रराग-- सदृशे, रक्ताऽ केवली भगवान् महावीर स्वामी माह प्रकार के नियम से और नारह प्रकार के तप से अपनी आत्मा को भावते हुए जन विचर, (तया ण) तर तुम निश्चय से (मम एयमह निवेदिनासि) मुझे यह समाचार निवेदित करना, (त्तिकडे विसजिए) ऐमा कहकर उसे विसर्जित कर दिया मू०२१॥
'तए ण' इत्यादि--
(तए ण) तदनन्तर (समणे भगव महावीरे) श्रमण भगवान् महावीर (कल्ल) दूसरे दिन (पाउप्पभायाए रयणीए) जिसमे प्रभात प्रकट हो चुका है ऐसी रजनी क होने पर (फुल्लु-प्पल-कमल-कोमलुम्मीलियमि अहपडुरे पहाए) तथा निफसित कमलपत्रों एव चित्रमृग के नयनों का उन्मीलन जिसमे हो चुका है ऐसे शुभ्र आभायुक्त प्रात काल के होने पर, तया (रत्तासोग-प्पगास-फिंसुयઅને બાર પ્રકારના તપ વડે પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા જ્યારે વિચારે (तया ण) त्यारे तमे ४३२ (मम एयमट्ठ निवेदिजासि) भने थे सभाया२ निवेदन ४२०२ (त्तिकट्ट निसजिए) सेम डीन तेने विहाय यो [सू २१]
'तए ण' त्यादि
(तए ण) त्या२ पछी (समणे भगर महावीरे) श्रभर लगवान महावीर (कल्ल) मी हिपये (पाउप्पभायाए रयणीए) ते रात्रिनु न्यारे प्रमात घट थयु, (फुल्लु-प्पल-कमल कोमलु-म्मीलियमि अहपडुरे पहाए) तथा વિકસેલા કમલપત્રો તેમજ ચિત્રમૃગના નયન ત્યારે ઉઘડી ચુક્યા હેય એવી शुल मालवाणे प्रात ४५ थयो, तया ( रत्तासोग-पगास-किंसुय-सुयमुह