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________________ وي प्रियदर्शिनी टोका अ० १४ नन्ददत्त-नन्दनियादिपइजीयचरितम् नन्वस्थिरा अपि कामभोगा यदि मुखहेतरः स्युस्तदा तत्परित्यागो न विधेय ? इति शङ्का निराकर्तुमाह मूलम्-- सामिस कुललं दिस्स, वज्झमाणं निरामिसं। आमिसं सबमुज्झित्ता विहरामो निरामिसा ॥४६॥ छाया-सामिप कुलल दृष्ट्वा, पाध्यमान निरामिपम् । आमिष समुज्झिता, विहरामो निरामिपा ॥४६॥ टीका-'सामिस' इत्यादि हे राजन् ! सामिप = माससहित कुलल-पक्षिण, वाध्यमानअन्यपक्षिणा पीडयमान दष्ट्वा-सामिपः पक्षी आमिपाऽऽहारिभिः पक्षिभिः पीडयते इति विलोक्य तथा निरामिपमासरहित तमेन कुलल निरुपद्रुत दृष्ट्वा वयमपि सर्व-निरवशेषम् आमिषम्-अभिष्वङ्गहेतुक शब्दादिविषयम् उज्झित्वा परित्यज्य निरामिपाः= लिये (जहा इमे भविस्सामो-यथा इमे भविष्यामः) जैसे ये पुरोहित आदि । घने हैं वैसेही हमलोग भी बनेंगे।इस प्रकार कमलावतीने राजासे कहा॥४५॥ यदि कोई इस पर यों कहें कि विपयभोग भले ही अस्थिर हों इससे हमको क्या लाभ ?। वे यदि सुखदायी हैं तो हमको इनका परित्याग नहीं करना चाहिये । इसका उत्तर इस प्रकार है-'सामिस' इत्यादि। ___ अन्वयार्थ हे राजन् ! (सामिस कुलल-सामिप कुललम् ) मांसको द्याये हुए पक्षीको (यज्झमाण दिस्स-चाभ्यमान दृष्ट्वा ) अन्य मांस लोलुपी पक्षियों द्वारा दुःखित देखकरके तथा (निरामिस-निरामिषम् ) निरामिप उसी पक्षीको निराकुल देखकरके हमलोग भी (सव्वम् आमिस मशानातुं ५५ उयाय छ १ मा माटे जहा इमे भविस्सामो-यथा इझे भविष्याम २५ मे पुरोहित को३ मत्या छ तपास पो मन मे કમલાવતીએ રાજાને કહ્યું કે ૪૫ છે. આમાં જે કંઈ એમ કહે કે, વિજયભાગ ભલે અરિયર હોય એની સાથે અમારે શું સમ્બન્ધ છે? એ જે સુખદાયક છે. તે પછી અમારે એને પરિત્યાગ न ४२३ नये येनउत्त२ मा प्रारत “सामिस"-त्याहि । अन्वयार्थ-डे २१ ! सामिस कुलल-सामिप-कुललम् भासने वर्धन मेडता पक्षीत बज्झमाण दिस्स-बाध्यमान दृष्ट्वा भी भासदुपी पक्षीयाबा • अपातु नाता निरामिस-निरामिपम् निराभि५ मे पक्षीन नि व्य आमिस उज्झित्ता-सर्व आमिष उज्झित्वा महिपाना
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
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