SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1093
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८७४ उत्तराध्ययनले S विवेकिनो यत्कुर्वन्ति, तदाह मूलम् - भोगे भुच्चा वमिती ये, लहुभूयविहारिणो । आमोयमाणा गच्छति, दिया कामकमा इर्व ॥ ४४ ॥ छाया - भोगान् शुक्क्या वान्या च लघुभूतविहारिणः ! आमोदमानो गच्छन्ति, द्विजाः कामक्रमा इव ॥४४॥ टीका- ' भोगे' इत्यादि - ते विवेकिनो धन्याः ये हि भोगान् = मनोज्ञशन्दादिविपयान् श्रुत्वा = पुनः विपाकदारुगान्तान् भोगान् चान्सा = परित्यज्य लघुभूतविहारिणः लघुः - वायुस्तद्भूताः तत्सदृशाः सन्तो विहरन्ति ये ते तथा, अमतिवद्धविहारिण इत्यर्थः अथवा - लघुभूत = सयमस्तेन हि शील येषा ते तथा सयमविहारिण इत्यर्थः, एतादृशाः सन्त आमोदमाना:-आ-समन्वान्मोदमाना आनन्दमनुभवन्तो गच्छन्ति = विचरन्ति अभीष्ट स्थानम् । अनार्थे दृष्टान्तमाह - 'दिया' इत्यादि, इव यथा कामक्रमाः = काम यथेच्छ क्रमः-क्रमण गमन येषा ते तथा - अप्रतिहतगमनशीला देखकर हर्षित मन होते हैं, परन्तु यह नही जानते हैं कि हम भी जगत् के भीतर वर्तमान है अतः हम भी भस्म होंगे ||४२ ॥४३॥ विवेकी जन क्या करते है यह बात बतलाते हैं -- 'भोगे' इत्यादि । अन्वयार्थ - वे विवेकी धन्य हैं जो ( भोगे - भोगान् ) मनोज्ञ शब्दादिक विषयोको (भुच्चा-भुक्तत्वा) भोग करके पश्चात् विपाक कालमें दारुण जानकर (वमित्ता - चान्त्वा) उनका परित्याग कर देते हैं और इस प्रकार होकर ( लहुभूयविहारिणो- लघुभूतविहारिणः ) वायुके समान अप्रतिबद्ध विहारी बन जाते है -अथवा संयमित जीवनसे जो विहार करते रहते है वे (आमोयमाणा - आमोदमाना ) आनदका अनुभव करते વર્તમાન છીએ અને અમે પણ આજ રીતે ભસ્મિભૂત ખની જવાના છીએ ૪૨-૪૩ विवेडीन शुरे छे ते ताववाभा आवे छे " भोगे " - छत्याहि ! अन्वयार्थ — मे पिवडीने धन्य छे, भोगे - भोगान् भने।ज्ञ शब्दाहिड विषयाने भुच्चा-भुक्त्वा लोगवीने पछी विधा अजमा हाइशु लगीने थे। वमित्ता वान्त्वा परित्याग उरी हे छे भने थे अभागे उरीने लहुभूयविहारिणोलघुभूतविहारिण वायुना नेवा अप्रतिषद्ध विहारी जनी लय छे सयमित लवनथी ने बिहार ४२ता रहे छे ते आमोयमाणा - आमोदमाना અથવા
SR No.009353
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1960
Total Pages1106
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy