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नम्वीको किञ्च-स्त्रीणामपि तद्भव एव संसारक्षयो भवति । स्त्रियो हि उत्तमधर्मसाधिकाः, ततश्च केवलज्ञानप्राप्ति संभवस्तासाम् । सति च केवले नियमान्मोक्ष इति ।
तथा चोक्तम्
"णो खलु इत्थी अजीवो, ण यासु अभब्वा, ण यावि दंसणविरोहिणी, णो अमाणुसा, णो अणारि उप्पत्ती, णो असंखेज्जाउया, णो अइकूरमई, णो ण उवसंतमोहा, णो ण सुद्धाचारा, णो असुद्धवौंदी, णो ववसायवज्जिया, णो अपुवकरण विरोहिणी, णो णवगुणट्ठाणरहिया, कहं न उत्तमधम्मसाहि गत्ति"। इन्हें दीक्षा देने का निषेध है तो इससे यह ज्ञात होता है कि इसके अतिरिक्त स्त्रियों को दीक्षित होने का अधिकार है, विशेष का निषेध अवशिष्ट में संमति का पोषक होता है। ___तथा-स्त्रियों का भी तद्भव में ही संसार का क्षय हो जाता है, क्यों कि वे भी उत्तमधर्म को साधन करने वाली होती हैं । इसलिये इससे उनमें केवलज्ञान की उत्पत्ति होती है। केवलज्ञान के होने पर नियम से मुक्ति का लाभ होता ही है । कहा भी है
"णो खलु इत्थी अजीवो, ण यासु अभव्या ण यावि दंसणविरोहिणी, णो अमाणुसा णो अणारिउप्पत्ती, णो असंखेज्जाउया, णो अइकूरमई, णो ण उवसंतमोहा, णो ण सुद्धाचारा, णो असुद्धबोंदी, णो ववसायवज्जिया, णो अपुश्वकरणविरोहिणी, णो णवगुणहाणरहिया कह न उत्तमधम्मसाहि गत्ति" દીક્ષા દેવાને નિષેધ છે તે તેથી એ જાણવા મળે છે કે તે સિવાયની સ્ત્રીઓની દીક્ષા લેવાને અધિકાર છે; વિશિષ્ટ નિષેધ અવિશિષ્ટમાં સંમતિનો પિષક હોય છે.
તથા સ્ત્રીઓને પણ તે ભવમાં સંસારને ક્ષય થઈ જાય છે, કારણ કે તેઓ પણ ઉત્તમ ધમને સાધનારી હોય છે. તેથી તે વડે તેમનામાં કેવળજ્ઞાન પેદા થાય છે. કેવળજ્ઞાન થતાં નિયમ પ્રમાણે મુક્તિને લાભ મળે જ છે. ४थु ५४ छ
"णो खलु इत्थी अजीवो, ण यासु अभव्या णयावि दंसणविरोहिणी, णो अमाणुसा, णो अणारिउप्पत्ती, णो असंखेज्जाउया, णो अइकूरमई, णो ण उव संतमोहा, णो ण सुद्धाचारा, णो अशुद्धवोंदी, णो ववसायवज्जिया, णो अपुल्य करणविरोहिणी, णो णवगुणवाणरहिया, कहं न उत्तमधम्म साहि गत्ति" .