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जम्बूद्वीपप्राप्तिस्त्र भवन्ति नतु विपमतया, यथा कार्तिक्या ! अनन्तरं हेमन्त ऋतुर्भवति पापपूर्णिमाया अनन्तरं शिशिरतः एवं प्रकारेण सपतयैव तवः परिणमन्त्रीत्यर्थः 'णचुण्ड णाइसीओ' यश्च संवत्सरोनात्युष्णः नातिशयेन तापकः तथा नातिशीतः तथा 'वहदो' यहूदकः प्रभूतजलराशि संपन्नः स च संवत्सरो भवति लक्षणतो निष्पन्न इति नक्षत्रचारलक्षणलक्षितत्वात् नक्षत्रसंवत्सर इति ।
'ससि समगपुण्णमासि जोएंति विसमचारि णक्खत्ता। कडूओ वहूदओ आ तमाङ रांवच्छरं चंदं ॥२॥ शशिसमकं पौर्णमासी योजयन्ति विपमचारि नक्षत्राणि ।
कटुको बहूदक स्तमाहुः संवत्सरं चान्द्रमितिच्छाया ।। अस्यार्थस्तु-'ससिसमग' शशिना समकं योग सम्बन्धम् उपगतानि 'विसमचारिणखत्ता' विषमचारीणि मास विसदृशनामकानि नक्षत्राणि 'पुण्णमानि जोएंति' पौर्णमासी तां तां पौर्ण मासी मासान्ततिथिम् योजयन्ति-परिसमापयन्ति यस्मिन् संवत्सरे 'कडुओ बहुदओय' कटुको बहूदकश्च, यश्च संवत्सरः कटुकः शीतातपरोगादि प्रधानतया परिणाम दुःखदायक: प्रकार के समरूप सेही जिस ऋतु का जिस में परिणमन होता रहता है वह भी समक नक्षत्र है 'णच्चुहणाइसीओ' जो संवत्सर न अति उष्ण होता है और न अतिशीत होता है किन्तु 'बहूदओ' प्रभुतजल राशि संपन्न होता है वह संवत्सर लक्षण से निष्पन्न होता है। इसकारण नक्षत्रों के चार रूप लक्षण से लक्षित होने के कारण नक्षत्र संवत्सर कहा जाता है 'सलि समग पुण्णमासि जोएंति विसम चारि णक्खत्ता कडुओ बहूदओ आ तमाहु संबच्छरं चंद' इस गाथा का अर्थ ऐसा है चन्द्र के साथ योग- सम्बन्ध-को प्राप्त हुए विषम चारी नक्षत्र-मास से विसइश नाम वाले नक्षत्र उस उस मासान्त की तिथिको जिस संवत्सर में समाप्त करते हैं तथा जो संवत्मर कटुक होता है-शीत-आतप, रोग आदि की प्रधानता को लेकर परिणाम में दुःख दायक होता है, तथा प्रभूत जलगशि से संपन्न होता છે, પવની પૂર્ણિમાં પછી શિશિરવતુ હોય છે. આ જાતને સમરૂપથી જ જે વસ્તુઓમાં परिमन थतु २७ छ, ते ५ समनक्षत्र छे.'णच्चुहूणा णाइसीओ रे सवत्स२ मतिsey होतु नथी तमा भतिशात पण डोतु नथी ५२'तु 'बहूदओ' प्रभूत शि सम्पन्न હોય છે, તે સંવત્સર લક્ષણથી નિષ્પન્ન હોય છે. આથી નક્ષત્રના ચાર રૂપ લક્ષણથી elक्षत पान दीधे नक्षत्र सत्स२ ४डेवामां आवे छे. 'ससि समग पुण्णमासिं जोएंति विसमचारि णक्खचा, कडुओ वहूदओ आ तमाहु संवच्छरं चंद' मा यान। अथ ॥ પ્રમાણે છે - ચન્દ્રની સાથે ગ–સંબંધ–ને પ્રાપ્ત થયેલા વિષમચારી નક્ષત્ર માસથી વિસદશ નામવાળા નક્ષત્ર-તત્ તત્ માસાન્તની તિથિને જે સંવત્સરમાં સમાપ્ત કરે છે, તેમજ જે સંવત્સર કટુક હોય છે-શીત, આતપ, રંગ, વગેરેની પ્રધાનતાને લીધે પરિણામમાં દુખ