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________________ ૨૭૦ अम्बूद्रीपतिसूत्रे चतुर्थच चन्द्रमासः चन्द्रमंवत्सरावपि ज्ञातव्य इति । तृतीयस्तु युगसंवत्सरः अभिवर्द्धित नामकः मुख्यतया त्रयोदश चन्द्रमागमाणः संवत्सरो द्वादशचन्द्रमासप्रमाणः संवत्सर उपजायते एतादृशः संवत्सरः कदा भवतीति चेदत्रांच्यते अत्र खल युगं चन्द्र चन्द्राभिवर्द्धित चन्द्राभिवर्द्धित लक्षण पञ्च संवत्सरात्मकं सूर्य संवत्सरापेक्षवा परिभाव्यमानमन्यू नानतिरिक्ता नि पञ्चवर्षाणि भवन्ति, सूर्यम सथ सार्द्ध त्रिंशदहोरात्रप्रमाणः, चन्द्रम सस्तु एकोनत्रिंशद्दिनानि द्वात्रिंशच्च द्वापष्टिभागा दिवसस्य, ततो गणितक्रमेण सूर्यमंवत्सर सम्बन्धि त्रिंशन्मास ति क्रमे एकचान्द्रमासोsusो भवति, सच चान्द्रमासो यथाऽधिको भवति तथापूर्वाचार्यैः प्रदर्शितः, तथाहि 'चंदरस जो विसेसो आइचस्स य इविज्जगासस्त । तीस गुणिओ संतो वह हु अहिमासगो एक्को' | चन्द्रस्य योविशेष आदित्यस्य च भवति मासस्य । त्रिंशता गुणितः सन् भवति दु अधिमासक एक इतिच्छाया) गुणित होता हुआ चन्द्र मास सेनिष्पन्न होने के कारण संवत्सर रूप कहा गया है इस प्रकार द्वितीय और तृतीय चतुर्थ चन्द्र मास भी चन्द्र संवत्सर रूप होते है ऐसा जानना चाहिये परन्तु तृतीय युग संवत्सर कि जिसका नाम अभिबर्द्धित है मुख्यरूप से, १३मासों का होता है यह अभित्ति नामका युग संवरसर कब होता है ? तो इसका उत्तर ऐसा हैं कि चन्द्र संवत्सर द्वितीय चन्द्र संवत्सर अभिवर्द्धित संवत्सर चन्द्र चतुर्थ संवत्सर और अभिवर्द्धित संवत्सर इस प्रकार संवत्सर रूप जो युग है उस में सूर्य संवत्सर की अपेक्षा विचारित होने पर न कमती न बढती ऐसे केवल पांच हा वर्ष होते हैं सूर्यमास ३० ॥ अहोरात का होता है परन्तु जो चन्द्र माल है वह २९ दिनका तथा एक दिन के ६२ भागों मे से ३२ भाग प्रमाण होता है गणित क्रम के अनुसार सूर्य संवत्सर सम्बन्धी ३० मास जब अतिक्रमित समाप्त हो जाते हैं तब एक चन्द्र मास अधिक होजाता નિષ્પન્ન હાવા ખદલ સવત્તર રૂપ કહેવામાં આવેલ છે. આ પ્રમાણે દ્વિતીય અને તૃતીય ચતુર્થ ચન્દ્રમાસ પણ ચન્દ્ર સવત્સર રૂપ હાય છે, આ પ્રમાણે જાણી લેવું જોઇએ પરંતુ તૃતીય યુગ સવત્સર કે જેનું નામ અન્નિવદ્ધિત છે, મુખ્ય રૂપ થી ૧૩ ચાન્દ્રમાસેના થાય છે. આ અભિવૃદ્ધિંત નામક યુગ સંવત્સર કયારે હાય છે? તે આના જવા" આ પ્રમાણે છે કે ચન્દ્ર સવત્સર દ્વિતીય ચન્દ્ર સવસર અભિતિ સવત્સર ચન્દ્ર ચતુ સવત્સર અને અભિવૃદ્ધિત સવત્સર આ રીતે પાંચ સવત્સર રૂપ જે યુગ છે તેમાં સૂ સવત્સરની અપેક્ષાએ વિચર કરવામાં આવે ત્યાર બાદ એછા પશુ નહિ અને વધારે પણ નહિં આમ મૂક્ત પાંચ જ વર્ષ હાય છે. સૂર્ય માસ ૩૦ના અહેારાતના હાય છે, પરંતુ જે ચાંદ્રમાસ છે તે ૨૯ દિવસના તેમજ એક દિવસના ૬૨ ભાગામાંથી ૩૨ ભાગ
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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