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________________ २२६ अम्ब्धीपमासिक मुहर्तेन कतिमागान् लभते, तत्र राशित्रयस्थापना इत्थम्-६०/१०९८००/१/ अत्र चरमेनैककलक्षणेन राशिना यदा मध्यस्थ १०९८०० राशे र्गुणनं क्रियते तदा तदेव भवति 'एकेन गुणितं तदेव भरतीति नियमात्' तदा एकेन गुणितस्य मध्यमराशे राधेन पप्टिलक्षणराशिना भागो हियते तदा लब्धानि अप्टादशशतानि त्रिंशदुत्तराणि १८३०, एतावतो आगान एकस्य मण्डलस्य सूर्य एकेन मुहूर्तेन गल्छतीति ॥ ___ सम्प्रति नक्षत्राणां मागायिका गति प्रश्न येतुमाह- एगमेगेणं भंते' इत्यादि, 'एगमेगेणं भंते ! मुहुत्तेणं णक्खत्ते' एकैकेन खलु भदन्त ! मुहन नक्षत्रम् 'केवायाई भागसयाई गच्या कियन्ति-कियत्संख्यकानि भागशतानि गच्छति, हे भदन्त ! नक्षत्रमेकेन मुहूर्तन मण्डलस्य शियसंख्यकानि भागशतानि गच्छतीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यानि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जं जं मंडलं उसंकमित्ता चारं चाइ' यद् यन्मण्डलमुपसंक्रम्य-संप्राप्य नक्षत्र प्राप्त होंगे तो इस बात को जानने के लिए यहां पर नाशिक करना चाहियेइस विधि में तीन राशियों की स्थापना इस प्रकार से करनी होती है-६०१०९८००-१ अब यहां अन्तिम राशि १ के द्वारा मध्पकी राशि जो १०९८०० है उसे गुणित करने पर १०९८०० ही आते हैं क्यों कि १ से गुणित हुई राशि में कोई संख्या परिवर्तित नहीं होती है ऐसा नियम है । फिर अन्तिम राशि से गुणित हुई मध्य की राशि में ६० का भाग देना चाहिये । तय १८३० लब्ध होते हैं इस तरह सूर्य एक हर्न में एक मंडल के १८३० भागों तक जाता है। अब गौतम स्वामी नक्षत्रों को नागात्मिक गति को जानने के लिये प्रभु से 'एगमेगेणंभंते! मुहुत्तेणं णक्ख ते केवयाई भागसयाई' ऐसा पूछते हैं कि-हे भदन्त ! नक्षत्र १ मुहर्त में मण्डल के कितने सौभागों तक जाता है ? इसके उत्सर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा! जं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ-तस्स २ मंडलपरिक्खेवस्त વડે ૧૦૯૮૦૦ મડળ ભાગે પ્રાપ્ત થાય છે તે એક મુહૂર્ત વડે કેટલા મંડળ ભાગ પ્રાપ્ત થશે? તે એ વાતને જાવા માટે અહી રાશિ કરવી જોઇએ. આવિધિમાં ત્રણ શિયોની સ્થાપના આ પ્રમાણે કરવી પડે છે. ૬૦/૧૦૯૮૦૦૦/ હવે અહીં અંતિમ રાશિ ૧ વડે મધ્યની રાશિ જે ૧૦૯૦૦૦૦ છે તેને ગુણિત કરવાથી ૧૦૯૮૦૦૦ સંખ્યા આવે છે. કેમકે ૧ થી ગુણિત કચેલી સંખ્યામાં કઈ પણ જાતનું પરિવર્તન થતું નથી. પછી અંતિમ રાશિથી ગુણિત થયેલી મધ્યની રાશિમાં ૬૦ નો ભાગાકાર ક જોઈએ. તેનાથી ૧૮૩૦ લબ્ધ થાય છે. આ પ્રમાણે સૂર્ય એક મુહૂર્તમાં એક મંડળના ૧૮૩૦ ભાગે सुधी नय छे. ७३. गीतमस्वामी नक्षत्र मामिगति oneyql मारे प्रभुने 'एग. मेगेगं भंते ! महत्तेणं णक्खत्ते केवयाए भागसय ई' वी शत प्रश्न ४२ ४ मत! નક્ષત્ર એક મુહૂર્તમાં મંડળના કેટલા સે ભાગ સુધી ગતિ કરે છે? એના જવાબમાં प्रभु ४३ छ-'गोयमा! जं जं मंडलं असंकमित्ता च.रं चरइ सरस तस्स मंडलपरिक्खेवस्स
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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