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________________ प्रकाशिका कीटा-सप्तमवक्षस्कार- सू. १५ नक्षत्राधिकारनिरूपणम् काले, तेन तत्तन्मण्डलेषु तत्तन्नक्षत्रसंबन्धि सीमा विष्कम्भे चन्द्रादि प्राप्तौ सत्यां योगः संपद्यते इति मण्ड उच्छेदश्च सीमा विष्कम्भादौ समयोजनो भवतीति ॥ . सम्प्रति सूर्यस्य भागामिकां गतिं प्रश्नयितुमाह-एगमेगेणं' इत्यादि । 'एगमेगेणं भंते ! मुहुत्तेणं' एकैककेन खल्ल भदन्त ! मुहर्तन 'रिए' सूर्यः 'केवइयाई भागसयाई गच्छ कियन्ति भागशतानि गच्छति, हे भदन्त ! सूर्यः एकेन मुहूर्तेन कियन्ति भागशतानि गच्छवीति प्रश्नः, 'भगानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जं जं मंडलं उबसंकमित्ता चार चरई' यद् यन्मण्डलग्नुपसंक्रम्य-संप्राप्य चारं गतिं चरति-करोति 'तस्स तस्स मंडलपरिक्खेतस्स' तस्य तस्य मण्डलपरिक्षेपस्य 'अट्ठारसतीसे भागसए गच्छइ' अष्टादश 'त्रिंशद्भागशतानि गच्छति विशदधिकानि अष्टादशशतानि गच्छतीत्यर्थः 'मंडलं सय सहस्सेहि' मण्डलं शतसहस्रैः लक्षकसंख्याभिरित्यर्थः 'अट्ठाणउईश्य सएहि छेत्ता' अष्टानवति शतैश्च छित्त्वा-विभागं कृत्वा गच्छतीति, कयमेवं गवतीति चेदत्रोच्यते त्रैराशिककरणात, तथाहि-पष्टिमुहत्तरेकं शतसहस्रमष्टानवतिः शनानि मण्डलभागानां लभ्यन्ते, तदा एकेनचन्द्रादिकी प्राप्ति होने पर योग बन जाता है और मण्डलच्छेद सीमा विष्कम्भादि में सात योजन का होता है अब गौतमस्वामी सूर्यकी भागामिक गति के सम्बन्ध में एगमेगेणं सुरिए केवइयाई मागसयाई गच्छह) हे भदन्त ! एक मुहूर्त में सूर्य कितने सौ भाग तक जाता है ? ऐसा पूछ रहे हैं इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-(गोयमा ! जं जं मंडलं उघसंकमित्ता चारं चरइ, तस्त मंडलपक्खेयस्स अट्ठारस तीसे भागसए गच्छइ) हे गौतम ! सूर्य जिस जित मंडल को पास करके अपनी गति करता है वह उस उस मंडल परिक्षेप के १८३० भाग तक गति करता है। यहां मंडलों के १ लाख ९८०० भागों को विभक्त करके वह सूर्य इतने भाग तक जाता है-गति करता है ऐसा समझना चाहिये उसका भाव ऐसा है कि ६० मुहतों द्वारा १०९८०० मंडल भाग प्राप्त होते हैं तो एक मुहूर्त के द्वारा किनने मंडल भाग છે તેમાં ચન્દ્રાદિની પ્રાપ્તિ થવાથી પેગ બની જાય છે. અને મંડળછંદ સીમા વિધ્વંભાદિમાં સાત જન જેટલો હોય છે. वे गौतभस्वामी सूर्यनी भाभि गतिना समयमा प्रश्न ४२ छ- 'एगमेगेणं सूरिए केवइयाई भागसयाई गच्छइ' 3 मत ! मे मुतभा सूर्य से ML सुधी १५ छ ? मेन ni प्रभु ४३ छ-'गोयमा जं जं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तस्स मंडलपरिक्खेवस्स अद्वारस तीसे भागसए गच्छई' गीतम! सूर्य २२ भजन પ્રાપ્ત કરીને પિતાની ગતિ કરે છે તે તત્ તત્ મંડળ પરિક્ષેપના ૧૮૩૦ ભાગો સુધી ગતિ કરે છે. અહીં મંડળોના ૧ લાખ ૯ હજાર ૮ ભાગેને વિભક્ત કરીને તે સૂર્ય આટલા ભાગ સુધી જાય છે-ગતિ કરે છે. આમ સમજવું જોઈએ, આને ભાવ આ પ્રમાણે છે કે ૬ મુહ ज० २९
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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