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________________ ___.., . , . .जन्हीमप्रतिको । द्वितीयमण्डलमुपसंक्रम्य चारं चरति तदा खलु एकैकेन महतन कियाप्रमाणक क्षेत्रं गच्छ. तति प्रश्नः, पृच्छया संगृह्यते, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंचजोयणसहस्साई' पञ्चयोजनसहस्त्राणि 'एकंच एकवीसं जोयणस' एकंवैकविंशति योजना, शतम्, एकविंशत्यधिकमेकं योजनशतरित्यर्थः 'एकारसयसढे भागसहस्से गच्छ. एकादश : पष्टिभागसहस्त्राणि पष्टयधिकानि एकादशभागसहस्राणि गच्छति; 'मंडलं तेरसई, जाव छेत्ता मण्डलं च त्रयोदशभि भांगसहजैः सप्तभिश्च शतैः पञ्चविंशत्यधिकमागैरिछत्वा-विभ-. ज्येति : कथमेतावत्प्रमाणं भवतीति सूर्यप्रस्ताव उपपत्तिपूर्वकं प्रदर्शितम् इहापि तेनैव रूपेण ज्ञातव्यं विस्तरभयान्न पुनलिख्यते इति द्वितीयमण्डलम्,२॥ . .. .. ___ सम्प्रति तृतीयं सर्वबाह्यमण्डलं दर्शयितुमाह-'जयाणं' इत्यादि, 'जयाणं भंते ! बाहिर तच्चं पुच्छा, हे भदन्त ! यदा खलु चन्द्रः सर्वबाह्य तृतीयमण्डलमुपसंक्रम्य चार चरति तदा खलु एकैकन मुहर्तन कियत्प्रमाण क्षेत्रं गछतीति प्रश्नः पृच्छया संगृह्यने, भगवा: में जाता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा। पंच जोयणसहस्साई एक्कं च एकवीस जोयणसयं' हे गौतम ! तप वह ५१२१ योजन और 'एक्का.. रसय सहे भागसहस्से गच्छइ' ११६० भाग तक जाता है 'मडलं, तेरसहि'जीवः छेत्ता तथा इसे १३७२५ से विभक्त करके ऐसा कहना चाहिये कि वह: ५१२१: 2. चोजन का उल्ल पर जाता है। इतना इसका चार क्षेत्र कैसे होता है तो यह सब कर्थन मूर्य प्रकरण में देखलेना चाहिये विस्तार होने के भय से हम यहां उसे नहीं प्राट कर रहे हैं। तृतीय साह्य मंडलंवक्तव्यता इस में गौतमस्वामी ने प्रभु से ऐसा पंछा है-'जया णं भंते ! बाहिरतच्चं पुच्छा' है भदन्त ! जब चद्रे सवास्य तृतीयं मंडल पर पहुंच कर अपनी गति क्रिया करना है तब वह एक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को पार कर देता है ? इस ઉપર પોંચીને પિતાને ગતિ કરે છે, ત્યારે તે એકમુહર્તમાં કેટલા ક્ષેત્ર સુધી જાય છે? या प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४३ 23-गोयमा! पंच जोयणसहस्साई एकच एक्कवीस जोयण पर्य' म ! त्या३ । ५१२१ यो मन 'एक्क रस ये सट्टे भागसहरसे गच्छई' १1१० मा ५-1 छ, 'मंडलं तेरसहि जाव छेत्ता' तथा त १३७२५ थामत કરીને એમ કહેવું જોઈએ કે ૫૧૨૧૩s જન સુધી એ મંડલ. પર જાય છે. એનું ચ૨ ક્ષેત્ર કેવી રીતે થાય છે તે આ વિષયમાં સંઘળું કથન સંયપ્રકરણમાં જઈ લેવુ જોઈએ વસ્તાર થવાના ભયથી અમે અહિંયા તે દર્શાવેલ નથી तृतीय समाहम तव्यता ____ाम गौतम भी प्रभुने यो प्रश्न या छ, 'जयाणं भंते ! बाहिरतच्च पुच्छा' ३ स न्यारे यन्द्र सपनाही तृतीयम' पर पड़ायान पातामी-ति-या
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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