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________________ કરે जबीपप्रालियो विरहकाछे कि प्रकुर्वन्ति इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'तहा चत्तारिपंच वा सामाणिया देवा' तदा चत्वारः पञ्च वा सामानिका देवाः तदा तस्मिन् इन्द्रच्यवनकाले चत्वार:-चतुः संख्यकाः पञ्च-पञ्चसंख्यका वा सामानिका देवाः, एकमत्येन मिलित्वा 'तं ठाणं उवसंवजिताणं विहरंति' तत्स्थानापसंपद्य खलु विहरन्ति, वस्य च्युते न्द्रस्य स्थानमुपसंपद्य अधिष्ठाय विरहन्ति तदिन्द्रस्थानं परिपालयन्ति, कियत्कालपर्यन्त मिन्द्र. स्थानं परिपालयन्ति तत्राह-'जाव' इत्यादि, 'जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवई' यावत्तत्रान्य इन्द्र उपपन्नो भवति, यावत्कालपर्यन्तम् अन्योऽपर इन्द्रोऽधिष्ठायक उपपन्नः समुत्पनो भवतीति । सम्पति, इन्द्रविरह कालं प्रश्नयन्नाह-'इंदहाणेणं' इत्यादि, 'इंदहाणेणं भंते' इन्द्र स्थानं खलु भदन्त ! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए' कियन्तं कालं कियत्कालपर्यन्तम् उप. पातेन-इन्द्रस्योत्पादेन विरहितं प्रज्ञप्तं कथितमिति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं एग समयं उकोसेणं छम्मास उववाएणं विरहिए' जघन्येनैकं समय मुत्कर्पण होता है 'से कहमियाणि पकरेंति' तब वे उस समय क्या करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु गौतमस्वामी से कहते हैं 'गोयमा! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिया देवा ते ठाणं उवसंपज्जित्ताणं विहरंति' हे गौतम! उस समय चार या पांच सामा. निकदेव एक संमति से मिलकर उस च्युत हुए इन्द्र के स्थानकी पूर्ति कर देते हैं। 'जाव तत्थ अण्णे इंदे उववणे भवई' फिर वहां पर कोई दूसरा इन्द्र उत्पन्न हो जाता है तात्पर्य कहने का यही है कि इन्द्र से रिक्त हुए इन्द्र स्थान पर चार या पांच सामानिक देव स्थानापन्न इन्द्र के रूप में तव तक ही काम संचालित करते रहते हैं कि जब तक कोई दूसरा इन्द्र उस स्थान पर उत्पन्न नहीं होता है। 'इंदहाणे णं भंते ! केवइयं कालं उववाएणं विरहिए' है भदन्त ! इन्द्रस्थान कितने काल तक इन्द्र के उत्पाद से विरहित रहता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं 'गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं उक्कोलेणं छम्मासे' हे गौतम! इन्द्र श्युत याय छे. 'से कहमियाणि पकरें ति' स्यारे तमा त समय शुरे छ ? माना पाममा प्रभु ४ छ. 'गोयमा ! ताहे चत्वारि पंच वा सामाणिया देवा ते ठाणं उवसंपब्जिसाणं विहरति' 3 गौतम!ते समये या 3 पांय सामानि हेवा से सभतिथी भजीत a श्युत यया न्द्रना स्थाननी पूतिः ४२ छे. 'जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवई' પછી ત્યાં કોઈ બીજે ઈદ્ર ઉત્પન્ન થઈ જાય છે. તાત્પર્ય આ પ્રમાણે છે કે ઈન્દ્રથી રક્ત થયેલા ઈન્દ્રના સ્થાન પર ચાર કે પાંચ સામાનિક દેવે સ્થાનાપન્ન ઈન્દ્રના રૂપમાં ત્યાં સુધી જ કામનું સંચાલન કરતા રહે છે કે જ્યાં સુધી કેઈ બીજે ઈન્દ્ર તે સ્થાન 6५२ Sपन्न थ। नथी. 'इंद द्वाणेणं भते ! केवइयं कालं उबवाएणं विरहिए 3 महत! ઇન્દ્ર સ્થાન કેટલા કાળ સુધી ઈન્દ્રના ઉત્પાદથી વિરહિત રહે છે? એના જવાબમાં પ્રભુ ड ठे-गोयमा ! जहणेणं एगं समयं उक्कोसेगं छम्मासे' गीतम! न्द्रनु स्थान पन्द्रना
SR No.009347
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1978
Total Pages569
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size46 MB
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