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प्रकाशिका टीका-सप्तमवक्षस्कारः सू. ९ तापक्षेत्रादिनिरूपणम् णं माणुस्मुत्तरस्स पन्धयस्स' अन्तर्मध्ये खल मानुषोत्तास्य सम्बन्धिनः 'जे दिममरिय जाव तारारूवे' ये चन्द्रसूर्यग्रहनक्षतारारूपाः ज्योतिष्काः 'तेणं देवा' ते खलु उपर्युक्ता देवाः 'नो उद्घोववनगा नो कप्पोववनगा' नो ऊोपपत्रकाः सौधर्मादिद्वादशभ्यः कल्पेभ्य अर्ध्वम्-उपरि यानि ग्रेवेयकानुत्तरविमानानि तत्र नोत्पन्नाः न वा कल्पोपपनकाः सौधर्मादि विमानेषु नोत्पन्ना इत्यर्थः । किन्तु 'विमाणोववनगा' विमानोपपत्रका, विमानेषु-चन्द्रसूर्यहुआ है वह गौतमस्वामी में भगवान के प्रति अति प्रीति का द्योतक है मनुष्यो का सद्भाव-उत्पत्ति स्थिति मरण आदि-मानुषोत्तर पर्वत के पहिले २ तक है मानु. षोत्तर पर्वत के बाद उस तरफ मनुष्यों का सद्भाव उत्पत्ति स्थिति मरण आदि नहीं है इसलिये इसका नाम मानुषोत्तर ऐसा हुआ है-अथवा-विद्या आदि शक्ति के अभाव में मनुष्य इसे किसी भी प्रकार से उल्लङ्घन नहीं कर सकते है इसलिये भी इसका नाम मानुषोत्तर हुआ है चैमानिक देवों के कल्पोपपन्न
और कलातीत के भेद से दो भेद प्रतिपादित हुए है यही बात यहाँ 'उद्धोववन्नगा कप्पोवयन्नगा' इन पदों द्वारा प्रकट की गई है चारस्थिति" पदमें जो मण्डलगति परिभ्रमण करने रूप चार-गतिका अभाव प्रकट किया गया है वह स्था धातु का अर्थ गति निवृत्ति को लेकर किया गया है इस तरह से किये गये इन प्रश्नों का उत्तर प्रभु देते हुए कहते हैं-'गोयमा! अंतोणं माणुसुतरस्स पवयस्स जे चंदिम सूरिय जाव ताराहवे तेणं देवा णो उद्धोवण्णगा, जो कप्पोवषण्णगा; धिमाणोचवण्णगा, चारोववण्णगा, णो चारहिईया गइरईया गई. समावण्णगा' हे गौतम ! मानवोत्तर पर्वत सम्बन्धि चन्द्र, सूर्य यावत् तारा येસવમાં જે બે વખત “ભદન્ત શબ્દ પ્રયુક્ત થયે છે તે ગૌતમમાં ભગવાન પ્રત્યે જે અંતિપ્રીતિ છે તે બતાવે છે. માણસને સદભાવ-ઉત્પત્તિ-રિસ્થતિ મરણ આદિ-માનુષેત્તર પર્વતની પહેલાં પહેલાં સુધી છે. માનુષેત્તર પર્વત પછી તે તરફ મનુષ્યને સંભાવ ઉત્પત્તિ-સ્થિતિ મરણ વગેરે નથી. એથી આનું નામ માનુષેત્તર એવું થયું છે. અથવા વિદ્યા વગેરે શક્તિના અભાવમાં મનુષ્ય આને કઈ પણ પ્રકારથી ઉલંઘન કરી શકતા નથી એટલા માટે પણ એનું નામ માનુષેત્તર થયેલું છે. વૈમાનિક દેના કપ૫ને मनपातीत महथी से लेहो प्रतिपाहित थयेसा छे. मे त मी 'उद्धोववन्नगा कप्पोववन्नगा' से पहो 48 ट ४रवामां मावली छ. 'यास्थिति' ५४मा मजगति પરિભ્રમણ કરવા રૂપ ચાર-ગતિને અભાવ પ્રકટ કરવામાં આવેલ છે તે “થા ધાતુને मथ गति-निवृत्तिaasa४२पामा मावत छ. या प्रमाणे प्रश्नी ४२वामा म्यादा छ तनपामा प्रभु मा शत भाषेछ-'गोयमा ! अंतोणं माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम सूरिय जाव ताराहवे तेणं देवा णो उद्घोववण्णगा, णो कप्पोववष्णगा, विमाणोववण्णगा, बाराववण्णगा, णा चारदिईया, गइरइया, गइ समावण्णगा' 3 गौतम ! भानुषोत्तर परत
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