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________________ . ६६३ जम्बूद्वीपप्राप्ति विकुऱ्या 'एगे सक्के भगवं तित्थयरं करयलपुढेणं गिण्हइ' तेषां पञ्चाना मध्ये एकः शक्रो भगवन्तं तीर्थकरं करतलपुटेन करतलयोः ऊर्वाधो व्यवस्थितयोः पुटं संपुटं शुक्तिकासंपुटमिवेत्यर्थः' तेन अति अतिपवित्रेण सरसगोशीपचन्दनचवितेन धूपवासितेनेतिगम्यं गृह्णाति, 'एगे सबके पिट्टओ आयवत्तं धरेइ' एकः शक्रः पृष्ठतः आतपत्रं छत्रं परति गृह्णाति 'दुवे सका उभो पासिं चामरुक्खेवं करेंति' द्वौ शक्रौ उभयोः पायोः चामरोरक्षेपं कुरुतः ‘एगे सक्के पुरओ वजपाणी पकडू' इति' एकः शक्रः पुरतो बज्रपाणिः सन् प्रकर्षति निर्गमयति, आत्मानमिति, अग्रतः प्ररर्तते इत्यर्थः। अत्र च सत्यपि सामानिकदेवपरिवारे यत् इन्द्रस्य स्वयमेव पञ्चरूपविकुर्वणं तत् त्रिजगद्गुरोः परिपूर्ण सेवालिप्मुत्वेन बोध्यम् । वित्ता विकुर्वणाकर के 'तित्थयरमाउआए पासे ठवेह' फिर उसने उस शिशुको तीर्थकर माता के पास रख दिया 'ठवेत्ता पंच सके विउचइ, विउवित्ता एगे सक्के भगवं तित्थयरं करयलपुडेण गिण्णइ एगे सबके पिट्टओ आयवत्तं धरेइ, दुवे सक्का उभओ पासिं चामक्खेवं करेंति' इसके बाद उसने फिर पांच शकों की विकुर्वणा की अर्थात् वह स्वयं पांच रूपोंवाला बन गया इस प्रकार पांचरूपों में एक शक के रूप ने भगवान् तीर्थकर को अपने करतल पुट से पकडा यह उसका करतल पुट परम पवित्र था, सरल गीशीर्ष चन्दन से लिप्त था और धूप से वासित था एक दूसरे शक ने भगवान के ऊपर छत्र ताना और दो शकों ने भगवान की दोनों ओर खडे होकर उन पर चामर ढोरे तथा 'एगे सक्के पुरओ वज्जपाणी पकडू इति' एक शक हाथ मे वन लेजर भगवान् के आगे २ चला यद्यपि सामानिकादि देवों का परिवार उस समय साथ में चल रहा था परन्तु इस प्रकार से अपने आपको पांच रूपों में विकुर्चित करके વિરહથી દુઃખિત થાય નહિ. એટલા માટે જ તે શકે જિનના જેવા રૂપવાળા એક બાળકની विg . "विउव्चित्ता' विधु' र 'तित्ययरमाउआए पासे ठवेई' ५छी शुने तीय ४२ भातानी पासे भूती दाधी. 'ठवेत्ता पंच सके विउव्वइ, विउवित्ता एगे सक्के भगवं तित्थयर करयलपुडेण गिण्हइ एगे सबके पिटुओ आयवत्तं घरेइ, दुवे सक्का उभओ पासिं चामरुक्खेव करे ति' त्या२ मा तो श पाय शोनी विणा ४ी अटकेत પિતે પાંચ રૂપવાળો બની ગયે. આ પ્રમાણે પાંચ રૂપિયાથી એક શકના રૂપે ભગવાન તીર્થકરને પિતાના કરતલ પટમાં ઉપાડવા તેને આ કરતલ પુટ પરમ પવિત્ર હતો સરસ ગશીર્ષ ચન્દનથી લિપ્ત હતો તેમજ ધૂપથી વાસિત હતો. એક શક્રે ભગવાનની ઉપર છત્ર આચ્છાદિત કર્યું અને બે શક્રો એ ભગવાનની બને તરફ ઊભા રહીને તેમની ઉપર यभर जपा साया तथा 'एगे सक्के पुरओ वज्जपाणी पकड़ह इति' से २४ सयमा વજ લઈને ભગવાનની આગળ આગળ ચાલવા લાગ્યા. જો કે સામાનિકાદિ દેને પરિ વાર તે સમયે સાથે-સાથે ચાલી રહ્યો હતે. પરંતુ આ પ્રમાણે પિતાની જાતને પાંચ
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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