SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 667
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६५८ जम्बूदीपप्राप्तिसूते पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिख्वएणं पच्चोरुहइ' अष्टभिरग्रमहिपीभिः द्वाभ्यामनीकाभ्यां गन्धर्वानीकेन च नाटयानीकेन च साढे तस्मात् दिव्यात् यानविमानात् पौरस्त्येन पूर्व स्थितेन त्रिसोपाप्रतिरूपकेण प्रत्यवरोहति अवतरति सः शक्रः ननु पूर्वत्रिसोपानप्रतिरूपकेण शक्रस्य अवतरणमुक्तम् अपराभ्याम् उत्तरदक्षिणाभ्यां केपामवतरणम् इत्याह-'तपणं सकस्स देविंदस्स देवरणो' इत्यादि 'तए थे' ततः खलु 'सकस्स देविंदस्स देवरणो' शक्रस्य देवेन्द्रस्य देवराजस्य 'चउरासीइ सामाणिभ सहस्सीओ' चतुरशीतिः सामानिकसाहनिकाः चतुरशीति सहस्त्रसंख्याक सामानिकाः 'दिव्यागो जाणविमाणयो' दिव्यात् यानविमानात् 'उत्तरिल्टेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति' औतराहेण, उत्तरदिग्भागवर्तिना त्रिसोपानप्रतिरूपण प्रत्यवरोहन्ति, अवतरन्ति 'अवसेसा देवाय, देवीओअ, ताओ दिवाओ जाणविमाणाओ' दिवाओ जाणविमाणाओ पुरथिमिल्लेणं निलोत्राणपडिरूवएणं पच्चोरुहाई' स्थापित करने बाद फिर वह शक अपनी आठ अग्रभहिपियों के एवं दो अनीकोंगन्धर्वानीक और नाटयानीक के साथ उस दिव्य यान विमान से पूर्व के त्रिसो. पान प्रतिरूपक से होकर नीचे उतरा । ठीक है विमान की पूर्वदिशा में रहे हुए त्रिसोपान प्रतिरूपक से इन्द्र नीचे उतरता है ऐसा आप कहते हैं तो उत्तर के और दक्षिण के त्रिसोपान प्रतिरूप से कौन उतरता है तो इस आशंका के समाधान निमित्त सूत्रकार कहते हैं___'तएणं सकस्स देविंदस्स देवरणो चउरासीई सामाणिअ साहस्सीओ जाण विमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिस्वरणं पच्चोरुहंति' उस देवेन्द्र देव राज शक के उतरजाने के बाद उसके जो चौरासी हजार सामानिक देव थे वे उस दिव्य यान विमान से उसकी उत्तरदिशा के त्रिसोपान प्रतिरूपक से होकर नीचे उतरे 'अवसेसा देवाय देवीओ य लाओ दिव्चाओ जाणविमाणाओ दाहिजिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहंति त्ति' बाकी के देव और देवियां उस पडिरूवएणं पच्चोनहई' स्थापित या माशपातानी गाई भयभडिपीमा तभ। બે અનીકે ગન્ધર્વોનીક અને નાની-ની સાથે તે દિવ્ય યાન-વિમાનના પૂર્વ તરફના ત્રિપાન પ્રતિરૂપકે ઉપર થઈને નીચે ઉતર્યો. આ વાત બરાબર છે કે, તે શર્ક વિમાનની પૂર્વ દિશામાં આવેલા ત્રિપાન પ્રતિરૂપકો ઉપર થઈને નીચે ઉતર્યો એવું તમે કહે છે તે પછી ઉત્તર અને દક્ષિણના ત્રિપાન પ્રતિરૂપકે ઉપર થઈને કણ નીચે ઉતર છે? તો આ શંકાના સમાધાનાથે સૂત્રકાર કહે છે 'तए णं सक्कस्स देविदास देवरणो चउरोसीई सामाणिअ साहस्सीओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहति त हेवेन्द्र वरा ४ न्यारे उतरा गया ત્યારે તેના ૮૪ હજાર સામાનિક દેવે તે દિવ્ય યાન-વિમાનમાંથી તેની ઉત્તર દિશાના निसोपानप्रति३५। ५२ / नाय तर्या. 'अवसेसा देवाय देवीओय ताओ दिवाओ
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy