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________________ प्रकाशिका टीका-पञ्चमवक्षस्कारः सू. ३ पौरस्त्यरुवनिवासिनीनामवसरवर्णनम् ५५५ मस्तकेऽञ्जलिं कृत्वा तीर्थकरं तीर्थंकरमातरं च वन्दते नमस्पति वन्दित्वां नमस्यित्वा इति ग्राह्यम् 'कप्पेत्ता' कल्पयिता कर्तयित्वा "वियरगं खणंति' विवरकं गः खनन्ति 'खणित्ता' गतै खनित्वा 'वियरगे णाभि णिहणंति' विवरके गर्ने कल्पिते व नाभिं निदधति गर्ने स्थापयन्ति 'णिहणित्ता' निधाय गस्थापयित्वा 'रयणाण' य वइराणय पूरति' रत्नानां च वज्राणां च रत्नश्च स्त्रैश्च हीरकैः पूरयन्ति 'पूरेत्ता' पूरयित्वा 'हरियालियाए वेढं बंधति' हरितालिकाभिः दूर्वाभिः पीठं बध्नन्ति पीठं बध्वा हरितालिका वपन्तीत्यर्थः विवरक-- खननादिकं च सबै भगवदवयवस्वाशातनानिवृत्यर्थ बोध्यम् 'बंधित्ता' पीठं बध्या "तिदिसिंतओ कयलीहरए विउच्वंति' निदिशि-पश्चिमावर्जदिक् त्रये त्रीणि कदलीगृहाणि विकुर्वन्ति विकुर्वणाशक्त्या निर्मान्तीत्यर्थः 'तएणं तेसिं कयलीहरगाणं बहुमज्झदेसभाए तो चाउ-- स्सालए विउव्वंति' ततः खलु तदनन्तरं किल तेषां कदलीगृहाणां बहुमध्यदेशभागे त्रीणि चतुः शालकानि भवनविशेषान् विकुर्वन्ति विकुणाशक्त्या निष्पादयन्ति. 'तऍणं तेसिं चाउस्सालगाणं बहुमज्झदेसभाए तओ सीहासणे विउव्यति' ततः खलु तेषां चतुः शालकानां तीर्थकरमातरंच वन्दन्ते, नमस्यंति वन्दित्वा नमस्थित्वा यह पाठ गृहीत हुआ है। 'कप्पेत्ता विभरगं खणन्ति, खणित्ता विअरगे णाभिलं' णिहणंति, णि हणित्ता रयणाण यवराण य पूति पूरित्ता हरिअलिआए वेढं बंधति'नालको. काटकर फिर उन्हो ने जमीन में खड्डा किया और उस खड़े में उस नाभिनाल को रखदिया-गाढदिया-गाढकर फिर उस खड़े को उन्हों ने रत्न और वनों से भर दिया-पूर दिया पूर करके फिर उन्हों ने हरी हरी दुर्गा से उसकी पीठ वांधी 'वधित्ता तिदिसिं तओ कयलीहरए विउति तएणं तेसिं कपलीहरगाणं बहु मज्झदेसभाए तओ चाउस्तालए विउव्वंति' दूर्चा से पीठ बांधकर फिर उन्होंने उस खड़े की तीन दिशाओं में पश्चिमदिशा को छोड़ कर पूर्व उत्तर और दक्षिणः दिशा में तीन कदली गृहों की विकुर्वणा की फिर उन तीन कदली गृहों तीन पीच में उन्हो ने तीन चतुः शालाओं की विकुर्वणा की 'तपान भार्ग खणन्ति, खणित्ता विअरगे णामि , (लं) णिहांसिौहासणे णिसीयावेंति' त्यो भावी रेति पूरित्ता हरिअलिआए वेढं बंधतिनो भाता सासन ५२ मेस उयां 'णिसीयावित्ता भने ते मामा ते नाल्लिाह अभंगेति' मेसीन पछी तभणे शता४ भने सहस रस्ता मन nd NR 6५२ भासिय ४३. 'अभंगेत्ता सुरभिणा गन्धवटएणं उवढेंति' સુગંધિત ઉપરણુથી–ગંધ ચૂર્ણથી મિશ્રિત ઘઉંના ભીના આટાના मते या५मा सन २४यु. 'उव्वद्वित्ताभयवं तित्थयर २ ४रीन, 842- ४ीन पछी तेभरे तीथ। माताश्रीन सायाथी ५४७या. 'गिण्हित्ता जेणेव पणे तेणेव उवागच्छंति' ५४ीन पछी બાંધી PaRamon तएणं ते आभिओगा ५.. ..
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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