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________________ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्रे ५० श्लक्ष्णाः चिक्कण पुद्गल स्कन्धनिष्पन्नाः, 'रुप्पपट्टा' रूप्यपट्टा रजतमयपट्टशालिनः 'वइरामयदंडा' वज्रमयदण्डाः वज्ररत्नमयदण्डयुक्ताः 'जलयामनगधिया' जलजामलगन्धिकाः कमलमुगन्धसदृशसुगन्धसम्पन्नाः, 'सुरम्मा' सुरम्याः अतिमनोहारिणः 'पासाईया ४' प्रासादीयाः दर्शनीयाः, अभिरूपा: प्रतिरूपाः । ' तेसिं णं तोरणाणं उपि' तेषां खलु तोरणानामुपरि 'वह' वहूनि 'छत्ताइछत्ता' उत्रातिच्छत्राणि छत्रात् लोकप्रसिद्धादेकस्माच्छादतिशायीनि उपर्यधोभागेनानेकानि छत्राणि च्छन्नातिच्छत्राणि, 'पडागाइडागा' पताकाऽतिपताकाः - पताको परिपताकाः, 'घंटाजुयला' घण्टायुगलानि अनेक घण्टायुगलानि 'चामरजुयला' चामरयुगलानि अनेकचामरयुगलानि, 'उप्पलहत्थगा' उत्पलहस्तका:- कमलसमूहाः पद्महस्तका - पद्मसमूहाः 'जाव' यावत् यावत्पदेन " कुमुदनलिन सुभगसौगन्धिक पुण्डरीकमहापुण्डरीक शतपत्रसहस्रपत्रहरतकानां सङ्ग्रहो वोध्यः, तत्र कुमु जुयला, उप्पलहत्थगा जाव सयसहस्सपत्तहत्थगा सञ्चारयणामया अच्छा जावपडिरुवा) उन तोरणों के अनेक कृष्णवर्ण की ध्वजाएं जो कि चामरों से अलङ्कृत हैं, फहरा रही हैं यावत् नीलवर्णयुक्त चामरों से अलङ्कृत ध्वजाएं फहरा रही हैं, लोहितवर्ण युक्त चाजरों से अलङ्कृत ध्वजाएं फहरा रही है, हारिद्रवर्ण युक्त चमरों से अलहकृत ध्वजाएं फहरा रही हैं, और शुल्कवर्णयुक्त चामरों से अलङ्कृत ध्वजाएं फहरा रही हैं, ये सब ध्वजाएं अच्छ है- आकाश और स्फटिक के जैसी - अति स्वच्छ हैं चिक्कणपुलों के स्कन्ध से निर्मित हैं, रजतस्यपट्ट से शोभिन हैं वज्रमयदण्डों वाली हैं कमल के जैसी गन्धवाली हैं अति मनोहर हैं प्रासादीय हैं दर्शनीय हैं अभिरूप हैं और प्रतिरूप हैं इन तोरणों के ऊपर तरके ऊपर अनेक छत्र हैं अनेक पताकातिपताकाएं हैं और अनेक घंटा युगल हैं अनेक चामर युगल हैं उत्पल हस्तक - कमल समूह है, पद्गहस्तक - पद्मसमूह है, यहां यावत्पद से - 'कुमुदन लिन सुभग सौगंधिक पुण्डरीक महापुण्डरीक शतपत्र सव्त्ररयणामया अच्छा जाव पडिवा' ते तोर पर भने: कृष्णार्जुनी वलओ જેએ ચામરાથી અલ કૃત છે-ફરકી રહી છે. ચાવત્ નીલવર્ણ યુક્ત ચામરાથી અલ કૃત ધ્વજાઓ ફરકી રહી છે, લેાહિતાક્ષ વયુક્ત ચામરાથી અલંકૃત ધ્વજા ફરકી રહી છે. હારિદ્રવ ચામરાથી અલંકૃત ધ્વજા ફરકી રહી છે અને શુકલવ યુક્ત ચામરાથી અલકૃત ધ્વજાએથી ફરકી રહી છે એ સર્વ વજાએ અચ્છ છે આકાશ અને સ્ફટિકની જેમ અતિ સ્વચ્છ છે. ચિકણ પુદ્ગલેના સ્કંધથી નિર્મિત છે, રજતમય પોથી શાભિત છે. વજ્રમય ઈડાવની છે. કમળા જેવી ગંધવાળી છે, અતિ મનેાહર છે. પ્રાસાદીય છે દનીય છે. અભિરૂપ છે અને પ્રતિરૂપ છે. એ તારણાની ઉપરના સ્તર ઉપર અનેક છત્રા છે. અનેક પતાકતિપતા છે, અને અનેક ઘંટા યુગલે છે. અનેક ચામર યુગલે -छे, उत्यक्ष हस्तः प्रमण समूह। छे, पद्महस्त४ पद्मसमूह है. यहीं यावत्पथी 'कुमुद नहिन सुभग सौगंधिक पुंडरीक महापुंडरीकशतपत्रम पत्र हस्तक' मे चाहना સમઢ
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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