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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः लू. ३० सोमनसगजदन्तपर्वतवर्णनम् ......... अत्रान्तरे ‘ण खलु निश्चयेन 'जंबुद्दीवे दीवे जम्बूद्वीपे द्वीपे 'महाविदेहे वासे' महाविदेहे वः सोमणसे 'णाम' सौमनसो नाम 'वक्खारपचए' वक्षस्कारपर्वतः 'पण्णत्ते प्रज्ञप्तः, सच कीदृशः ?. · इत्यपेक्षायामाह-'उत्तरदाक्षिणायए' उत्तरदक्षिणायत:-उत्तरदक्षिणदिशोदीपः पुनः "पाईणपडीवित्थिण्ण' प्राचीनप्रतिचीन विस्तीर्ण:-पूर्वपश्चिमयो दिशो विस्तारयुक्तः, अयं हि 'जहा' यथा 'मालवंते' माल्यवान् नाम 'वक्खारपन्यए' वक्षस्कारपर्वतः प्राग्वर्णितः 'तहा' तथा वर्णनीया, ततोऽत्र यो विशेषस्तं दर्शयितुमाह-'णरं' नवरं केवलं 'सवरययामए'. सर्वरजतमय:-सर्वात्मना रजतमयः माल्यवांस्तु वैडूर्यमयः तथा 'अच्छे जाय पडिहवे. अच्छो यावत्प्रतिरूप अच्छ इत्यारभ्य प्रतिरूप इति पर्यन्तानां तद्विशेषणवाचकानां पदानामत्र' सङ्ग्रहो बोध्या, स च बहुषु सूत्रेषु प्रसङ्गात्कृतो बोध्यः । अयं च 'णिसह वासहरपश्यतेणे' निधिवर्षधरपर्वतान्ते-निषधवर्षधरनामकपर्वतसमीपे खलु माल्यवास्तु नीलवत्समीपे चत्तारि' चलारि "जोयणसयाई योजनशतानि 'उद्धं' ऊर्ध्वम् 'उच्चत्तण उच्चत्वेन 'चत्तारि चवारिस पश्चिम दिशा में-एवं देवकुरु की पूर्वदिशा में जंबूद्वीप नाम के द्वीप के भीतर वर्तमान महाविदेह क्षेत्र में सौमनस नामका वक्षस्कार पर्वत कहा गया है.(उत्तरदाहिणायए पाइणपईणवित्थिंणे) यह वक्षस्कार पर्वत उत्तर से दक्षिण तक दीर्घ है और पूर्व से पश्चिम तक विस्तीर्ण है। " (जहा मालवंते वक्खारंपच्चए तहा-णवरं सवरयणामए अच्छे जाव पडिस्वे) जिस प्रकार से माल्यवान पर्वत के वर्णन के सम्बन्ध में कथन किया जा चुका है उसी प्रकार का वर्णन इस पर्वत का है, परन्तु यह सौमनस नामका वक्षस्कार पर्वत सर्वात्मना रत्नमय है आकाश और स्फटिक के जैसा निर्मल है चावत प्रतिरूप है यहां पर दर्शनीय आदि शेष पदों का संग्रह यावत् पद से किया गया है। इन संग्रहीत पदों की व्याख्या यथास्थान कंह स्थलों में की जा चुकी है अत: वहीं से इसे समझ लेना चाहिये (णिसहवासहरणजयंतेणं चत्तारि जोयण: વિજયની પશ્ચિમ દિશામાં તેમજ દેવકુરુક્ષેત્રની પૂર્વ દિશામાં જંબૂદ્ધપ નામક દ્વીપની અંદર : વર્તમાન મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં સૌમનસ નામક અતિ મણીય વક્ષસ્કાર પર્વત આવેલ છે. ઉત્તરदाहिणायए पाईणपड़ीणविस्थिपणे U RAIR Fत्त२यी क्षिर सुधीही मन पू थी.. पश्चिम सुधी विस्ती छे. 'जहा मालवंते वक्खारपव्वएं - तहाँ-णवरं सबरयणामए अच्छे जाव पडीरूवे रे प्रभारी मात्यवान कृतना न वि ४थन ४२वाभां भाव छ। તેવું જ વર્ણન આ પર્વનું છે, પણ અસૌમનસ નામક વક્ષસ્કાર 'પર્વત સર્વાત્મના २त्नभय ..PAI812 अने, टिना रम निम यावत् ति३५ छ..ही 'दर्शनीय વગેરે શેષ પદેનું ગ્રહણ થાવત્ પદથી થયેલું છે. એ પદેની વ્યાખ્યા યથાસ્થાન અનેક स्थान राम मावली छ, मेथा लासुसी त्यांची पायन ४२. - 'णिसवासहरपव्वयंतेणं, चत्तारि जोयणसयाई उद्धं उच्चत्तेणं चत्तारि गाउयसाई उन्बहेणं 'सेंसे तहेवं संवं
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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