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________________ प्रकाशिका टीका-चतुर्थवक्षस्कारः सू० २ पमहदनिरूपणम् सुवर्णमयानि 'अभिनरपत्ता' अभ्यन्तरपत्राणि क्वचित्तु पीतस्वर्णमयान्युक्तानि तथा 'तवणिः ज्जमया' तपनीयमयानि रक्तवणस्वर्णमयानि 'कैसग कैसराणि 'णाणामणिमया' नानामणिमयाः अनेकविधमणिमयाः 'पोखरट्टिमाना' पुष्करास्थिभागाः कमलबीजविभागाः, 'कणगामई कनकमयी-म्वर्णमयी 'कणि गा' कर्णिका-बीजकोशः, अथ कर्णिकामानाद्याइ-'सा गं' सा खल कर्णिका अजोयगं' अई योजनम् योजनस्यार्द्धम् 'आयामविक्खंभेणं दैयविस्ताराभ्याम् 'कोसं' क्रोश-क्रोशपर्यन्तम् 'बाहल्लेणं' बाहल्येन पिण्डेन, 'सबकणरा:मई' सर्वकनकमयी सर्वात्मना ऊनकमयी स्वर्णमयी, 'अच्छा' अच्छा आकाशस्फटिकवनिर्मला अत्र 'सण्डा' इत्यादि पदानामपि संन्नदो बोध्यः, तथाहि - 'लप्टा घृष्टा नीरजाः निर्मला निप्पका निकटच्छाया सप्रभा समरीचिमा सोद्घोता प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपा प्रतिस्पेति फलितम् । एक व्याख्या चतुर्थ जगतजगतीवर्णने विलोभनीया। 'तीसेणं' तस्याः खलु 'कण्गियाए' कर्णिकायाः 'उप्पि' उररि-ऊर्थे 'यहुयमरमणिज्जे' बहुसमरमणीयः अत्यन्तसमतलरमणीयः, 'भूमिभागे पण्णत्ते भूमिभागः प्राप्तः, स कीदृशः ? इत्यपेक्षायापता है कि बाहिर के पत्रों में से चार पत्र बर्यरत्नमय हैं और बाकी के पत्र रक्त सुवर्णमय है तथा-भीतर के जो पत्र हैं वे जाम्वृन्दमय-ईपद्रक्त सुवर्णमय हैं कहीं ऐसा भी कहा गया है कि वे पीनस्वर्णमय हैं इसके केशर रक्त सुवर्ण मय हैं इसके कमलबीजविभाग अनेक विधमणिमय हैं कर्णिका ईसकी स्वर्णमयी है (सा णं अद्धं जोयणं आयानविक्कंभेणं कोसं वाहल्लेणं सव्वकणगामई अच्छा) यह आयाम और विष्कम्भ की अपेक्षा अर्धयोजन की है एवं वाहल्य-मोटाईकी अपेक्षा एक कोश की है यह सर्वात्मना स्वर्णमयी है तथा आकाश और स्फटिकमणि के जैसी निर्मल है। यहां 'सहा' इत्यादि पदों का भी संग्रह हुआ है-जसे 'लष्टा, घृष्टा, मृष्टा, नीरजा, निर्मला, निष्पंका, निष्कंकटच्छाया, स प्रभा, समरीचिका, सोयोता, प्रासादीया, दर्शनीया, अभिरूपा, प्रतिरूप' इन રક્ત સુવર્ણમય છે. તેમજ અંદર જે પત્ર છે. તે જનદમય-ઈવરક્ત સુવર્ણમય છે. કેટલાક સ્થાને આવું પણ કથન છે કે એ પીત સ્વર્ણમય છે. એનાં કેશરે રક્ત સુવર્ણ મય છે. એને કમળ ખીજ વિભાગ અનેકવિધ મણિમયેથી નિર્મિત છે. આની કણિકા सुवर्ण भय छे. 'सा णं अद्धजोयणं आयामविक्खंभेणं कोमं वाहल्लेणं सबकणगामई અ” એ આયામ અને વિધ્વંભની અપેક્ષાએ અડધા જન જેટલી છે. અને બહત્ય જાડાઈની અપેક્ષા એક ગાવ જેટલી છે. એ સર્વાત્મના સુવર્ણમયી છે તેમજ આકાશ અને मन टिभी ये निम छे. ही 'सण्हा' वगैरे पहाना ५ सय थयेस छ. सम-'लप्टा, धृष्टा, मृप्टा, नीरजा, निर्मला, निष्पंका, निष्कंकटच्छाया, सप्रभा, समरीचिका, सोद्योता, प्रासादीया. दर्शनीया, अभिरूपा, प्रतिरूपा' ने पहनी व्याच्या याथा सूत्रगत तीन नमानस ने . 'तीछेणं कणियाए उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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