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________________ .२४२ जम्बूद्धीपतिसूत्रे नृन्दापुष्करिण्य उक्ताः, तदनन्तरं समायां पद्मनोगुलिकासहस्राणि पट् च गोमानसोसहस्राणि staforava forयेऽपि सर्व वक्तव्यमिति भावः । अत्र च सुधर्मासभातो यो विशे पस्तमाह- 'णवरं' इत्यादि - 'णवरं' नवरं केवलम् 'इम' इदम् एतत् 'णाणत्तं' नानात्वम् - अनेकलम् - भेद इति भावः सुधर्मासभा पेक्षयेतिशेषः 'एसिणं' एतेषां - जिनगृहाणांसह 'बहुमज्झदेलभाए' बहुमध्यदेश भागे - अत्यन्तमध्यदेश मागे 'पत्तेयं२' प्रत्येक २ एक स्मिन् जिन गृहे 'मणिपेढयाओ' मणिपीठिका:- मणिमयासनविशेषाः प्रज्ञप्ताः, ताथ मणिपीठिका: प्रमाणतः 'दो जोयणाई आयामविक्खंभेणं' द्वे योजने आयाम-विष्कम्भेण- दैर्घ्यविस्ताराभ्याम्, 'जोयण बाहल्लेणं' योजनं बाहल्येन - पिण्डेन, 'तासि' तासां मणिपीठिकानाम् 'उपि' उपरि- ऊर्ध्वभागे 'पत्तेयं २' प्रत्येकंर 'देवच्छंद्गा' देवच्छन्द के - जिनदेवास ने 'पण्णत्ता' प्रज्ञप्ते, तन्मानमाह - 'दो जोयणाड़' आयामविवखभेणं' द्वे योजने आयामविष्कम्भेण 'साइरेगाइ' सातिरेके - किञ्चिदधिके 'दो जोयणाई' द्वे योजने 'उद्धं उच्चतेणं' ऊर्ध्वमुच्चत्वेन, ते च देवच्छन्दके 'सव्वरयणामया' सर्वरत्नमये - सर्वात्मना रत्नमये, 'जिणपडिमा ' जिनप्रतिमा जिनगृह में भी यह सब वर्णित कर लेवें । यहां पर सुधर्मसभा से जो विशेष वक्तव्यता है वह कहा जाता है-'णवरं इमं णाणत्तं' केवल यही यहाँ पर सुधर्मसभा से भिन्नता है 'एएसिणं' इन जिन गृहों के 'बहुमज्झदेसभा ए' ठीक मध्यभाग मैं 'पत्तेयं पत्तेय' एक एक गृह में 'मणिपेढियाओ' मणिमय आसन विशेष कहे हैं । उन मणिपीठिका का प्रमाण इस प्रकार कहा है- 'दो जोयणाई आयाम विक्भेणं' उनका विस्तार 'दो योजन hi कहा है अर्थात उनकी लंबाई चौडाइ दो योजन की कही है। 'जोयणं वाहलेणं' उनका बाहल्य एक योजन का कहा है । 'तासिं' उन मणिपीठिका के 'उप' ऊपर के भाग में 'पत्तेयं पत्तेय' प्रत्येक में 'देवच्छंद्गा' जिनदेव का आसन 'पण्णत्ता' कहा है 'दो जोयणाई आयाम विकखंभेणं' वे आसन की लंबाई चोडाइ दो योजन की कही है । 'साइरेगाई' कुछ अधिक 'दो जोयणाई उद्धं उच्चએજ પ્રમાણે અહીં જીનગૃહમાં પણ એ તમામનુ વર્ણન કરી લેવું. मडीयां सुधर्भसलाना वर्षाथी ने विशेष वक्तव्य छे, ते अहेवामां आवे छे.- 'णवरं इमं णाणत्तं' मडियां ठेवण सुधर्भसलाथी भेटसी ४ भिन्नता छे. 'एएसिणं' से थहानी 'बहुमज्यसभाए' भरोभर भूध्य भागभां 'पत्ते पत्तेय' ४ ४ गृडभां 'मणि વૈઢિયાળો' મણિમય આસન વિશેષ કહેલા છે. એ મણિપીઠિકાનું પ્રમાણ આ પ્રમાણે હેલ छे. 'दो जोयणाई' आयाम विक्खभेण तेनेा विस्तार मे योजन। महेस छे. अर्थात् तेनी सभाई यहाजार्ध मे योजननी आहेस छे. 'जोयणं बाहल्लेण तेनु मास्य मे येोन्नतु अडेस छे. 'तासि' को भडिपीठाना 'उप्प' उपरदा लागभां पत्तेय पत्यं' ४२४भां 'देव च्छंद्गा' न हेवना मासन 'पण्णत्ता' म्हेल छे. 'दो जोयणाई आयाम विक्ख भेणं' मासननी संध्या पहाणार्ध मे योजननी आहेस छे. 'साइरेगाइ' ४६४ १धारे 'दो जोयणाई'
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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