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________________ १७२ जम्बूद्वीपप्रशतिसूत्रे 5 फलिहकूडे ५ - लोहियक्रूकडे ६ आणंदकूडे ७" 'गन्धमादन' इत्यादि प्रश्नमुत्रमुत्तानार्थम्., उत्तर हे गौतम! सप्तकृटानि प्रज्ञप्तानि तद्यथा - सिद्धायतनकूटम् १, गन्धमादनकूटम् २ ग्रन्थिलावती कुटम् ३, उत्तरकुरुकूटम् ४ : स्फटिककूटम् ५, लोहिताक्षकूटम् ६ आनन्दकूटं - ७, तत्र स्फटिककूटं स्फटिकमणिमयत्यात्, लोहिताक्षकूटम् - लोहितरत्नवर्णत्वात्, आनन्दकूटम् आनन्द नामकस्य देवस् क्रूटम् । ननु यथा वैतान्यादि गत सिद्धायतनादिकूटानां व्यवस्था पूर्वापरतया कृता तथाऽत्रापि ? किं वा ततः कचिद्विशेषः ? इत्याह - "कहि णं भंते ! गंधमायणे वक्खारपन्चए सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते ?, गोयना ! मंद रस्स पव्ययस्स उत्तरपच्चत्थिमेणं गंधमायण कूडस्स दाहिणपुरस्थिमेणं, एत्थ णं गंधमायणे वक्खारपव्वए सिद्धाययणकूडे णामं कूठे पण्णत्ते" कंव खलु भदन्त । इत्यादि - हे भदन्त ! गन्धमादने वक्षस्कारपर्वते सिद्धायतनकूटं का कुत्र प्रज्ञप्तम् ?, गौतम 1 मन्दरस्य पर्वतस्य उत्तरपश्चिंमेन उत्तरपश्चिम दिशोरन्तराले वायव्यलोहिकडे, आणंदकडे ) हे गौतम ! इस पर सातकूट कहे गये हैं- उनके नाम इस प्रकार से है - सिद्धायतनकूट, गन्धमादनकूट, गंधिलावतीकूट, उत्तरकुरु कूट, स्फटिककूट, लोहिताक्षकूट और आनन्दकूट। इनमें स्फटिककूट स्फटिकरत्न मय है लोहिताक्षरत्न के जैसे वर्णवाला है और आनन्दकूट आनन्द नामक देवका कृट है । अब यहां पर गौतमस्वामी के इस प्रश्नका कि जिस प्रकार से Marica आदिगत सिद्धायतनादि कूटों की व्यवस्था पूर्व अपर आदि रूप से की गई है उसी तरह की व्यवस्था क्या यहां पर भी की गई है ? या उसकी अपेक्षा यहाँ की व्यवस्था में कुछ अन्तर है ? उत्तर देते प्रभु कहते हैं (गोयमा मंदरस्सपञ्चयस्स उत्तरपच्चत्थिमेर्ण गंधमायणकूडस्स दाहिणपुरत्थिमेणं गंधमायणे 'वक्खारपन्च सिद्धाययणकूडे णामं कूडे पण्णत्ते-तं चैव क्षुल्लहिमवंते सिद्धाययणस्स कूडस्स पमाणं तं चैव -एएसिं सच्चेसिं भाणियचं) हे गौतम ! मंदर यक्स्रकूडे, आणंदकडे' हे गौतम! मे पर्वत पर सात छूटी मावेला छे, तेभना नाभ या प्रभाशे -छे-सिद्धायतन छूट, गंधभावन छूट, गघिसावती छूट, उत्तर छूट, स्कूटि४ 'लूट, अधभाहन ईंट, सोहिताक्ष छूट, अमे आनंद टूट, भांट छूट ईटि४ रत्नभय छे, सोहिताक्षना रत्न नेवा या वाणा छे भने मह छूट यानं नाम देवना छूट छे. હવે અહી. ગૌતમ પ્રભુને પ્રશ્ન કરે છે કે જેમ વૈતાઢય આદિગત સિદ્ધાયતનાં િફૂટની વ્યવસ્થા પૂર્વ અપર વગેરે રૂપમાં કરવામા આવેલી છે, તે પ્રમાણે જ શુ અહીં પણુ વ્યવસ્થા કરવામાં આવેલી છે ? કે તેની અપેક્ષાએ અહીંની વ્યવસ્થામાં કંઈ તફાવત છે? येनान्वाणभां अलुछे- 'गोयमा ! मंदरस्स पव्त्रयस्व उत्तरपच्चत्थिमेगं गंधमायण- कूडस्स दाहिणपुरत्थिमेणं एत्थणं गंधमायणे वक्खारपव्वए सिद्धाययणक्रुडे - णाम कूडे पण्णत्ते- चित्र शुल्लहिमवते सिद्धाययणस्स कूडस्स प्रमाणं तचैव एएसि सव्वेसि आाणियन्त्र? हे ?
SR No.009346
Book TitleJambudwip Pragnaptisutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages803
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jambudwipapragnapti
File Size67 MB
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