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आवश्यकसूत्रस्य निक्खेवणासमिईए' भाण्डमात्रे=उपकरणमात्रे, आदाननिक्षेपण-ग्रहणस्थापन तद्विपया समितिस्तया । 'उचारपासाणखेलजलसिंवाणपरिठावणियासमि ईए' उचार:=पुरीप, प्रस्रवण-मूत्र, खेला-श्लेप्मा, जल्लादेहमल, सिंघाणनासामल, तेपा परिठापनिका व्युत्सर्जन तद्विपया समितिस्तया । 'पडिकमामि' प्रतिक्रामामि, 'छर्हि' पद्भिः, 'जीवनिकाएहिं जीगाना निकायाराशय' जीवनिकायापृथिव्यप्तेनोवायुवनस्पतिनसस्वरूपास्तैस्तद्वारेत्यर्थः 'यो मया ऽतिचारः कृत' इत्यादि-सम्बन्धः प्राग्वदेव । 'पडिकमामि' प्रतिक्रामामि, 'छर्हि' पइभिः, 'लेस्साहिए लिश्यते-श्लिप्यते सम्पध्यते आत्मा कर्मभि'
(४) 'आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणासमिति'-वन-पात्र आदि उपकरणों का यत्नापूर्वक लेना और रखना।
__ तथा (५) 'उच्चार-प्रस्रवण-खेल-जल्ल-सिद्धाण-पारिठापनिकासमिति'-उच्चार आदि का यत्नापूर्वक दश घोल वर्ज (दाल) के परिष्ठापन करना, इनसे एव पृथ्वी, अप, तेज, वायु, वनस्पति
और प्रसरूप छह जीव निकायों से, तथा कृष्ण, नील, कापोत, तेज, पद्म और शुक्ल, इन छह लेश्याओं के सम्बन्ध से जो अतिचार किया गया हो तो उससे मै निवृत्त होता है'।
अब लेश्या का स्वरूप कहते हैं
जिसके द्वारा आत्मा कर्मों से लेपायमान हो उसको अर्थात् कषायों के उदय से प्राप्त शक्तिविशेपवाली योगप्रवृत्ति
(४) 'महान-मा-भात-निपाए!-समिति'-१२, पात्र मा ४२ ને યત્નાપૂર્વક લેવુ મૂકવું
तया (५) 'भ्यार-प्रसव-रेस-ca-सिंधा-यापिनिक-समिति-न्यार આદિને યત્ના પૂર્વક દશ-બેલ ત્યજીને પરિષ્ઠાપન કરવું એનાથી એવ પૃથ્વી, પાણી, તેજ વાયુ, વનસ્પતિ અને ત્રાસરૂપ છે જીવ નિકાયાથી, તથા કુષ્ણુ, નીલ, કાતિ, તેજ, પદ્ધ અને શુકલ આ છ લેશ્વાઓના સમ્બન્ધથી જે કઈ અતિચાર લાગ્યા હોય તે તેમાથી હુ નિવૃત્ત થાઉ છુ,
હવે લેસ્યાનું સ્વરૂપ કહે છેજેના દ્વારા આત્મા કર્મોથી લેપાયમાન થાય તેને અર્થાત્ કથાના ઉદયથી