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________________ 35 सुबोधिनी टोका सू. ४८ सूर्यामेण नाटयविधिप्रदर्शनम् ततः खलु बहवो देवकुमाराश्च देवकुमारिकाश्च चतुर्विध गेयं गायन्ति, तद्यथा-उत्क्षिप्तम् १ पादान्तम् २ मन्दक ३ रोचितावसानम् ४ ॥ ____ ततः खलु ते बहवो देवकुमाराश्च देवकुमारिकाश्च चतुर्विध नाटय विधिमुपदर्शयन्ति, तद्यथा अश्चित रिभितम् १ आरभट ३ भमोलम् ४ च ततः ग्वलु ते बहवो देवकुमाराश्च देवकुमारिकाश्च चतुर्विधमभिनयमभिनयन्ति. तद्यथा-दार्टान्तिकं १ प्रात्यन्तिक' २ सामन्तोपनिपातिकम् ३ अन्तर्मध्यावसानि च ४ ।। मृ० ४८॥ . कार्य किया (तं जहा) वे चतुर्विध बाजे इस प्रकार से हैं- (ततं विततं धणं झुसिर) तत, विनत, घन और शुषिर । (तएणं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य चउविहे गेयं गेयंति) इसके बाद उन सब देवकुमारोंने एवं देवकुमारिकाओं ने चतुर्विध गाना गाया. (तं जहा) वह चतुर्विध गाना इस प्रकार से है-(उक्वित्त, पयंतं, मंदाय, रोइयावसाणं च) उत्क्षिप्त पादान्त. मन्दक और रोभिवावसान (तएणं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारीओ य चउनिह गविहि उवदंसेंति) इसके बाद उन देवकुमारों ने एवं देवकुमारिकाओं ने चार प्रकार की नाटकविधि का प्रदर्शन किया. (तं जहा) वह चार प्रकार की नाटकविधि इस प्रकार से है-नाटकविधि इस प्रकार से है-- (अंचियं रिभियं आभिडं, भसोलं च) अचित. रिभित, आरभट और मसोल। (तएणं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ य घावि अभिगायंति) इसके बाद उन देवकुमारों ने एवं देवकुमारिकाओं ने चार (त जहा) ते यतुविय 41 22 प्रमाणे छ. (तन' विततं घण' भसिरं ) तत, वितत, धन, भने शुषि२. (तएण ते बहवे देवकुमाग य देवकुमारीओ य चउन्विहं गेयं गेयंति) त्यार पछी ते स हवामाश तमन हेतुमारियाये यार nail onal भाया. (तं जहा) ते यार सतना भीती ! प्रभारी छ. ( उक्खित पयंत, मंदाय. रोइयावसाणं च) Grary, virid, म६४ मने शयितासान ( तरणं ते बहवे देवकुमोरा य देवकुमारीओ य च उनि विहि उचंद सेति) ત્યાર પછી તે દેવકુમાર અને દેવકુમારિકાઓએ ચાર પ્રકારની નાટવિધિનું પ્રદર્શન કર્યું, (तौं जहा) तेयार प्रा२नी नाटयविधि मा प्रमाणे छ- (चियं, रिभियं आरभडं, भसोलं च) आथित, ललित, मारमट भने लसोस (तएणं ते बहवे देवकुमारा य देवकुमारियाओ चउचिवह अभियं अचिणयंतित्या२ पछी त हेवामा। तभर हेवाभारिमाणे या२ तन! अलि.
SR No.009342
Book TitleRajprashniya Sutra Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1965
Total Pages721
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_rajprashniya
File Size55 MB
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