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राजश्रीयम
नाणं ते वह देवकुमारा' इत्यादि। - का--दिव्यनाटयोपदर्शनानन्तरं खल ने-बानाः देवकुमाराः, च -पुनः देवकुमार्य चतुर्विय-चतुःप्रकारं वादित्र-वाद्य वांदयन्ति, तथानत-मृदङ्गपटवादि १, विततं-वीणादि २, धनकमिज्ञादि ३ शूपिरम
-शरद यादि । - ततःचादित्रवादनानन्तर खल, ते बहवो देवकुमाराः च-पुनः देव. कुमारिकाश्च चतुर्विध गेय-गीत गायन्ति, तद्यथा-उन्क्षिप्त-प्रथमत आर. ब्धम् १, पादान्त-पादशो वृद्धि गतम् . द्रादि-भागचतुच्यात्मकपादवद्धम् २, भन्दक-हस्व मन्द-मन्दमन्द-मध्ये गान मूछनादिगुणालङ्क त सन शनैः
प्रकार के अभिनय की विधिको प्रदर्शित किया ( जहा) बह चार प्रकार का अभिनय इस प्रकार से है-(दितिय, पाडियंतिय, सामंतोदणिवाझ्य अंगोमज्झायमागियं) दान्तिक, प्रात्यन्तिक, सामन्तोपनिपातिक और अन्तमध्यावमानिक ।
टीकार्थ-दिव्य नाटक का प्रदर्शन जब वे देवकुमार और देवकुमारिकाएँ कर चुकी-तय उसके बाद उन्होंने चार प्रकार के-तत-मृदङ्ग पटहादिक, वितत-वीणादिक. घन. कांस्य आदिक और शुपिर-शस्त्र वंशी आदि ; इन चानों को बनाया । इन चार प्रकारों के बाजों के बनने के बाद फिर उन सब देवकुमारोंने एवं देवकुमारिकाओं में चार प्रकार का गाना गाया--जो इस प्रकार से हैं-उत्क्षिप्त १, प्रथ. मतः आरंभ किया गया. पादान्न-कि, भागच पुष्ट यामक पाद से उसे . बद्ध किया, मन्दक-धीरे २ मन्द २ रूप से बीच में मूच्र्छनादि गुण से नयन प्रदर्शन' यु. (त' जहां) ते निय: MAA B प्रमाणे छ. (दितिय, पहियातिय, सामंतोवणिवाइय अंतोमज्ञावसाणियः) दन्ति, प्रात्यति सामतापनिपाति: भने सन्तमायावसानि....... ટીકાથ-જ્યારે દેવકુમારે તેમજ તે દેવકુમારિકાઓએ દિવ્ય નાટકવિધિનું પ્રદર્શન પૂરું કર્યું, ત્યાર પછી તેમણે ચાર જાતના-તત-મૃદંગ, પટ વગેરે, વિત-વીણું વગેરે ઘન-કાંસ્ય पोरे भने शुपिर-1, वासणी वागाने यां. .
- આ ચાર જાતના વાજિંત્રો વગાડ્યાં બાદ તે સર્વે દેવકુમારે તેમજ દેવકુમ રિ: કાઓએ ચાર રીતે ગીત ગાયું તે આ પ્રમાણે છે– ઉક્ષિપ્ત ૧, પહેલાં આરંભાયેલું - પાદાંત ૨, ત્યાર પછી ભાગચતુષ્ટયાત્મક પાદથી બદ્ધ કરાયેલાં. મંદક ૩, ધીમે ધીમે મંદ મંદ રૂપથી વચ્ચે મૂચ્છના વગેરે ગુણથી અલંકૃત કરાયેલું અને ત્યાર પછી તેને