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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद १४ सू० २ क्रोधप्रकारविशेषनिरूपणम् ५६३ यावद् वैमानिकानास्, एवं मानेनापि, माययापि, लोभेनापि चत्वारो दण्डकाः, जीवाः खलु भदन्त ! कतिभिः स्थानैरष्ट कर्मप्रकृतीश्चितवन्तः ? गौतम ! चतुर्भिः स्थानैरष्टकर्मप्रकृतीश्चितवन्तः, तद्यथा-क्रोधेन, मानेन, मायाया, लोभेन, एवं नैरयिकाणां यावद् वैमानिकानाम्, जीवाः खलु भदन्त ! कतिभिः स्थानै रष्टकर्मप्रकृतीश्चिन्वन्ति ? गौतम ! चतुर्भिः स्थानः, क्रोध कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार है (अभोगनिव्वत्तिए) उपयोग पूर्वक उत्पन्न किया हुआ (अणाभोगनिव्वत्तिए) विना उपयोग उत्पन्न हुआ (उवसंते) उपशान्त (अणुवसंते) अनुपशान्त (एवं नेरइया जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार नारकों यावत वैमानिकों का क्रोध (एवं माणेण वि) इसी प्रकार मान से भी (मायाए वि) माया से भी (लोभेण वि) लोभ से भी (चत्तारि दंडगा) चार दंडक (जीवाणं भंते ! कतिहि ठाणेहिं) हे भगवन् ! जीवों ने कितने स्थानों 'अर्थात् कारणों से (अट्टकम्मपगडीओ) आठ कर्मप्रकृतियां (चिणिसु?) चय की हैं ? (गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं अट्टकम्मपगडीओ चिणिंसु) हे गौतम ! चार कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का क्षय किया है (तं जहा) वे इस प्रकार (कोहेणं माणेणं, मायाए, लोभणं) क्रोध से, मानसे, माया से, लोभ से (एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं) इसी प्रकार नारकों यावत् वैमानिकों का ." ' (जीवाणं भंते !"कतिहि ठाणेहिं अट्ठकम्मपगड़ीओ चिर्णति) हे भगवन् जीव कितने कारणों से आठ कर्मप्रकृतियों का चय करते हैं ? (गोयमा ! चउहि ठाणेहिं) हे गौतन ! चार कारणों से ( जहा-कोहेणं, माणेणं, माघाए, लोभेणं) वे इस प्रकार-क्रोध से, मान से, माया से, लोभ से (एवं नेरइया जाव वेमाणिया) इसी प्रकार नारक यावत् वैमानिक ७५यो पू°४ अत्पन्न ४२रायेa (उवसंते) ७५urd (अगुवसंते) मनु५-1 (एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियाणं) से प्रारे ना२है। यावत् वैमानिना है.५ सभपा. (एवं माणेण वि) मे शते भानथी ५य (मायाए वि) भायाथी ५ (लोभेण वि) सोलथी ५५ (चत्तारि दंडगा) या२ ६४ ४ा नये (जीवाणं भंते! कइहि ठाणेहिं) डे सगवन् ! २३॥ ४८i स्थान अर्थात शाथी (अट्ठ कम्मपगडीओ) मा ४म प्रतिया (चिणिसु ?) यय ४२८ छ ? (गोयमा चउहि ठाणेहिं अद्रफम्मपगडीओ चिणिंसु ?) गौतम ! या२ ४२।थी 218 ४ प्रतियाना यय ४२० छ (तं जहा) ते अरे (कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेग) ओपथी, भानथी, भायाथी भने मथी (एवं नेरइयाणं जाव वेमाणियागं) से प्रारे ना२।। यावत् वैमानिनो विधेसमा __ (जीवाणं भंते ! कइहिं ठाणेहिं अट्ठकम्मपगडीओ चिगंति १) सावन् ! पटना शथी मा ४ प्रतियानु ययन ४२ छ १ (गोयमा ! चउहिं ठाणेहिं) हे गौतम ! यार थी (तं जहा-कोहेणं, माणेणं, मायाए, लोभेणं) ते मा ४ारे पिथी, भानथी,
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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