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प्रमैययोधिनी टीका पद १३ सू. २ गतिपरिणामादिनिरूपणम्
५१३ वि, नो सम्मामिच्छादिटी, सेसं तं चेव, एवं जाव चउरिदिया, णवरं इंदियपरिवुड्डीकायला, पंचिंदियतिरिख जोणिया गतिपरिणामेणं तिरियगतिया, सेसं जहा नेरइयाणं, णवरं लेस्सा परिणानेणं जाव सुकलेस्सा वि, चरित्तपरिणामेणं नो चरित्ती, अचरिती वि, चरित्ताचरिती वि, वेद परिणामेणं इथिवेदगा वि, पुरिसवेदगा बि, णपुंसगवेदगा वि, मणुस्सा गतिपरिणामेणं भणुयगतिया, इंदियपरिणामेणं पंचिंदिया अणिदिया वि, कसायपरिणामेणं कोहकसाई विजाव अकसाई वि लेस्लापरिणा. मेणं कण्हलेस्सा वि जाव अलेक्सा वि, जोगपरिणामेणं मणजोगी वि जाव अजोगी वि, उबओगपरिणामेणं जहा नेरइया, णाणपरिणामेणं आभिणिवोहियणाणी वि जाव केवलणाणी वि, अण्णाणपरिणामेणं तिणि वि अण्णाणा, दसणपरिणामेणं तिणि वि दंसणा, चरित्तपरिणामेणं चरित्ती वि, अचरित्ती वि, चरित्ताचरित्ती वि, वेदपरिणामेणं इत्थीवेयगा वि, पुरिसवेदगा वि, णपुंसगवेयगा वि, अवेयगा वि, वाण
अंतरा गतिपरिणामेणं देवगतिया, जहा असुरकुमारा, एवं जोइसिया • वि, नवरं तेउलेस्सा, वेमाणिया वि एवं चेव, नवरं लेस्लापरिणामेणं
तेउलेस्सा वि, पम्हलेस्सावि, सुक्लेस्सा वि, सेसं जीवपरिणामे।सू.२॥ ___ छाया-गतिपरिणामः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! चतुर्विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा-नरकगतिपरिणामः, तिर्यग्गतिपरिणामः, मनुष्यगतिपरिणामः, देवगतिपरिणाम. १.
गतिपरिणाम आदि की वक्तव्यता शब्दार्थ-(गतिपरिणामे गं अंते ! कइविहे पण्णत्ते ?) हे भगवन् ! गतिपरिणाम कितने प्रकार का कहा है ? (गोयमा! चउब्धिहे पण्णत्ते) हे गौतम ! चार प्रकार का कहा है (तं जहा) वह इस प्रकार (निरयगतिपरिणामे) नरकगति
ગતિ પરિણામ આદિની વક્તવ્યતા शाय-(गतिपरिणामेणं भंते | कइबिहे पण्णत्ते ?) ॐ भगवन् गति परिणाम हेटसा प्र! २ना i छ ? (गोयमा ! चउबिहे पण्णत्ते) हे गौतम | २२ ५४२ना ४॥छे (तं जहा) ने २प्रा (निरयगतिपरिणामे) न२४ात परिणाम (तिरयगातपरिणामे) तिययाति परिणाम (मणुयगतिपरिणामे) मनुष्याति पाम (देवगतिपरिणामे) हे गति परिणाम
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