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________________ ३३० Vापनासने यानि भदन्त ! स्थितानि गृह्णाति तानि किम् द्रव्यतो गृह्णाति क्षेत्रतो गृणाति, कालतो गृह्णाति भावतो गृणाति ? गौतम! द्रव्यतो गृणानि क्षेत्रतो गृहणाति, कालतो गृणाति, भावतो गृणाति, यानि भवन्त ! द्रव्यतो गृहणाति तालि किम् एकप्रदेशिकानि गृहणाति द्विप्रदेशिकानि यावद् अनन्तादेशिकानि गृह्णाति ? गौतम ! नो एकप्रदेशिकानि गृहणाति यावद नो असंख्येयप्रदेशिकानि गृहणाति, अनन्तप्रदेशिकानि गृह्णाति, यानि क्षेत्रतो गृणाति तानि किम् एकप्रदेशावगाहानि गृह्णाति, द्विप्रदेशावगा. करता है ? (गोयमा ! ठियाइं मिहति नो अठियाई पिण्हति) गौतम ! स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है, अस्थित द्रव्यां को नहीं ग्रहण काता (जाइं भंते ठियाई गिणहति) हे भगवन् ! जिन स्थित द्रव्यों को ग्रहण करता है (ताई किं व्वतो गिण्हति) उनको क्या द्रव्य से ग्रहण करता है (खिराओ गिहति) क्षेत्र से ग्रहण करता है (कालओ गिण्हनि) फालले ग्रहण करता है । (भावओ गिण्हति ?) भाव से ग्रहण करता है (गोयना ! स्वओदि निहति) हे गौतम ! द्रव्य से भी ग्रहण करता है (खेत्तमओ वि) क्षेत्र से भी (कालो वि) काल से भी (भावओ विगिण्हति) भाव से भी ग्रहण करता है। (जाति भंते ! चओ गेहति, ताई कि एगपसिनाई गिण्हति, दुपदेसियाई जाव अणंतपएलियाई गेहति ?) हे भगवत् ! द्रव्य से जिनको ग्रहण करता है, क्या एक प्रदेश वाले उन द्रव्यों को ग्रहण करता है क्या दिप्रदेशी यावत् अनन्तप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयला ! नो एगपदेसियाई गेण्हति) हे गौतम ! एकप्रदेशी द्रव्यो को ग्रहण नहीं करता (जाव नो असंखेज्जपएसियाई गिण्हइ) यावत् असंख्यातप्रदेशी द्रव्यों को ग्रहण नहीं करता (अणंतपएसियाई गेण्हति) अनन्लादेशी द्रव्यों को ग्रहण करता है। अठियाइं गिण्हति) गौतम स्थित द्र०यने अड ४२ , अस्थित द्रव्य नथी यह ४२तो (जाइं भंते ठियाइं गिण्हति) लावान् ! २ स्थित द्रव्य य ४२ छ (ताई किं व्वतो गिण्हति) तेयान शुद्रव्यथी यह ४२ छ (खेत्तओ गिहति) क्षेत्रथी हर ४२ छे (कालओ गिण्हति) ४थी यडय ४२ छे (भावओ गिण्हति ?) साथी अड ४३ छ (गोयमा ! दवओ वि गिण्हति) 3 गीत | द्रव्य थी ५ बडा ४२ छ (खेत्त ओवि) क्षेत्रथी ५ (कालओ वि) यी ५ (भावओ वि गिण्हति) साथी ५ अडए रे (जाति भंते । दब्बओ गेण्हति, ताई किं एगपदेसियाई गिण्हति, दुपदेसियाइं जाव अणंतपएसियाई गेण्डति ?) डे भगवन् द्रव्यथी ने घडण ४२ छे, शु से प्रदेशवाणा તે દ્રવ્યેને ગ્રહણ કરે છે, શું દ્વિદેશી યાવત્ અનન્ત પ્રદેશ દ્રોને ગ્રહણ કરે છે? (गोयमा ! नो एगरदेसियाई गेहति) गौतम । मे अशी द्रव्यने यह नयी ४२ता (जाव नो असंखेजपएसियोइं गिण्हइ) यावत् मसच्यात अशी द्रव्योन यह नथी
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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