SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 347
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेयवोधिनी टीका पद ११० ८ भापाद्रव्यग्रहणनिरूपणम् ढानि गृणाति यावद् असंख्येयप्रदेशानगानानि गृह्णाति ? गौतम ! नो एकप्रदेशावगाढानि गृह्णाति यावत् नो संख्येयप्रदेशावगाढानि गृह्णाति, असंख्येयप्रदेशावगाढानि गृह्णाति, यानि कालतो गृहणाति तानि किस् एकसमयस्थितिकानि गृह्णाति द्विसमयस्थितिकानि गृहणाति यावद् असंख्येयसमयस्थितिकानि गृह्णाति ? गौतम! एकसमयस्थितिकानि अपि गृहणाति द्वि समयस्थितिकान्यपि गृणाति यादद् असंख्येयसमयस्थितिकान्यपि गृह्णाति, यानि भावतो गृह्णाति तानि किं वर्णवन्ति गृह्णाति, गन्धवन्ति गृह्णाति, रस (जाइं खेत्तओ गेहति) जिन्हे क्षेत्र से ब्रहण करता है (लाइं कि एगपएसोगाढाई गेण्हति) क्या आकाश के एक प्रदेश में अवगाढ उन द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (किं दुपएसोगाढाइं गेहति) था दो प्रदेशों में अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (जाव असंखेज्जएएसोगाढाइं गेण्हति ?) यावतू क्या असंख्यातप्रदेशों में अवगाढ द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (जाई कालतो गेण्हति) जिन द्रव्यों को काल से ग्रहण करता है (ताई किं एगसमयठियाई गेण्हति) क्या एक समय की स्थितिवाले इन द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (दुसमयठिझ्याई गिण्हति?) क्या दो समय की स्थितिवाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (जाव असंखिज्जलमयठिड्याई गेहति ?) यावत् असंख्यात समय की स्थिलियाले द्रव्यों को ग्रहण करता है ? (गोयमा ! एगसमयठिड्याइं पिगेण्हति) हे गौतम ! एक समय की स्थिति वाले द्रव्यों को भी ग्रहण करता है (दुसमयठियाई पि गेण्हति) दो लमय की स्थिति वालों को भी ग्रहण करता है। (जाव असंखेज्जसमयठियाई पि गेण्हति) यावतू असंख्यातसमय को स्थिति वालों को भी ग्रहण करता है। ४२ता (अणंतपएसियाई गेण्हति) यनन्त प्रदेशा द्रव्याने अप रे छ (जाई खेत्तओ गेण्हति) रेयाने रथी यह ४२ छे (ताई कि एगपएसोगाढाई गेण्हति) शुसाशन ४ प्रदेशमा मदत द्रव्याने ग्रहणु ४२ छ ? (किं दुपएसो 'गाढाई गेण्हति १) शु में प्रदेशमा १८ द्रव्याने अडाय ४२ छ ? (जाव असंखेज्जपएसो गढिाइं गेहति १) यावत् शुमसच्यात प्रदेशमा अवाढ द्रव्याने घड ४२ छ? (जाइं कालओ गेहति) २ द्र०याने ४गी अडएर ४२ छ (ताई कि एगसमय ठिइयाई गेण्हति) शु मे समयनी स्थितिवाणात द्रव्याने ग्रह २ छ ? ( दुसमयठिझ्याई गिण्हति ?) शुमे समयनी स्थिति द्रव्योने ७१ ४रे छे ? (जाव असंखेज्जा समयठिइयाई) यावत् मस च्यात समयनी स्थितियाणा द्रव्याने यह ४२ छ ? (गोयमा! एगसमयठिइयाई पि गेहति) गौतम । ४ समयानी स्थिती पाने पर यह रे छ (दुसमयठिझ्याई पि गेहति) मे सभयनी स्थितिवाणाने प] ग्रहण ४२ छ (जाव असंखेज्जसमयठिझ्याइपि गेहति) यावत् २मसभ्यात सभयनी यतिवाणामाने ५४ अडम ४२
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy