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प्रमैयबोधिनी टीका पद ११ सू. ८ भापाद्रव्यग्रहणनिरूपणम्
३३७ ताई कि ओगाढाई गेण्हइ अणोगाढाइं गेहइ ? गोयमा! ओगाढाई गेण्हइ नो अणोगाढाइं गेण्हइ, जाइं भंते ! ओगाढाइं गिण्हइ ताई कि अणंतरोगाढ़ाई गेण्हइ परंपरोगाढाइं गेण्हइ ? गोयमा! अणंतरोगाढाई गिण्हइ, नो परंपरोगाढाई गैराहा, जाई भंते ! अणंतरोगाढाई गेण्हेइ ताई भंते ! किं अणूइं गेहइ वायराई गेण्हइ ? गोयमा! अणूइं पि गेण्हइ, बायराइं पि गेण्हइ, जाइं संते ! अणूइं गेण्हइ ताई किं. उई गेण्हइ, अहे गेण्हइ तिरियं गेहइ ? गोयमा ! उडूं पि गेण्हह अहे वि. गेण्हइ तिरियं पि गेण्हइ, जाई भंते ! उ पि गेण्हइ, अहे वि गेण्हइ तिरियं पि गेहइ, ताई कि आदि गेण्हई मज्झे गेण्हइ, पज्जवसाणे गेण्हइ ? गोयमा! आदि पि गेण्हा, मज्झे पि गेण्हइ पजवसाणे वि गेण्हइ, जाइं भंते ! आदि शिगेण्हइ, मझे पि गेण्हइ पज्जवसाणे वि गेण्हइ ताई कि लविलए गिण्हइ, अविसए गिण्हइ ? गोयमा । सविसए गिण्हइ नो अविसए गिण्हइ, जाइं भंते ! सविसए गेण्हइ ताई किं आणुपुटिव गेण्हइ, अणाणुपुर्दिव गेण्हइ ? गोयमा! आणुपुर्दिव गेण्हई णो अणाणुपुब्बि गेहइ, । जाइं अंते! आणुवुटिव गेण्हइ ताइं किं तिदिसिं गेण्हइ, जाव छदिसिं गेहइ ? गोयमा! नियमा! छदिसिं गेहइ ? पुट्ठोगाढअणं नरअणूय तह वायरे य उर्दु महे। आदि विसयाणुपुचि गियया तह छदिसिं चेव ।।सू० ८॥
छाया-जीवः खलु भदन्त ! यानि द्रव्याणि भापात्वेन गृह्णाति तानि किं स्थितानि गृणाति, अस्थितानि गृहणाति ? गौतम ! स्थितानि गृहणाति, नो अस्थितानि गृहणाति.
भाषा द्रव्य ग्रहण वक्तव्यता शब्दार्थ-(जीवे णं भंते जाति व्याति) हे भगवन् ! जीव जिन द्रव्यों को (भासज्जाय गिण्हति) भाषा रूप में ग्रहण करता है (ताई किं ठियाइं गेहति, अठियाई गेण्हति) क्या उल स्थित को ग्रहण करता है अथवा अस्थित को ग्रहण
ભાષા દ્રવ્ય ગ્રહણ વક્તવ્યતા शहाय-जीवेणं भंते ! जाति व्वाति) 3 मावन् ! २ द्रव्योर (भासत्ताए गिहति) मा५३५भा अहए। ४२ छ (ताई किं ठियाइं गेण्हति अठियाई गेण्हति १) शुते स्थितने यह ४२ छ अथवा मस्थितने अडएर ४२ छ ? (गोयमा ! ठियाइं मिण्हति, नो
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