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________________ प्रमेययोधिनी टोका पद १० सू. ३ अलोकादि चरमाचरमगताल्पवहुत्वनिरूपणम् १०५ प्रदेशाः अनन्त गुणाः, लोकस्य चालोकस्य च चरमान्तप्रदेशाश्च अचस्यान्तप्रदेशाश्च द्वयेऽपि विशेषाधिकाः, सर्वद्रव्याणि विशेषाधिकानि, सर्वप्रदेशाः अनन्त गुणाः, सर्वपर्यवाः अनन्तगुणाः ॥ सू० ३॥ टीमा-अथालोकादेश्वरमाचरमादिगतमल्पबहुत्वं प्ररूपयितुमाह-'अलोगस्त णं भंते । अचरमरल य चरमाण य, चरमंतपएसाण य अचरमंतपएलाण य' गौतमः पृच्छति-' हे भदन्त ! अलोकस्य खलु अचरमस्य च चग्माणाञ्च चरमान्तप्रदेशानाच अचरनान्तप्रदेशानाञ्च मध्ये 'दव्वयाए पएसट्टयार दव्वठ्ठपएसट्टयाए' द्रव्यार्थतया, अदेशार्थतया, द्रव्यार्थप्रदेशायतया 'जयरे कयरेहितो अप्पा वा, बहुया वा तुल्ला वा, विसेसाहिया वा?' कतरे कतरेभ्यो ऽल्पा वा, वहुका वा, तुल्या वा विशेषाधिका वा भवन्ति ? भगवान् आह-'गोथमा !' हे गौतम ! ' सव्वत्थोवे अलोगस्स दबयाए एगे अचरमे' सर्वस्तोक अलोकस्य द्रव्यार्थतया ख्यातगुणा हैं (अलोगस्स अचरमंतपएला अणंतगुणा) अलोक के अचरमान्त प्रदेश अनन्तगुणा हैं (लोगस्स य अलोगस्त य) लोक और अलोक के (चरमंतपएसा य अचरसंतपएसा य दोवि) चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश दोनों (विसेसाहिया) विशेषाधिक हैं (लव्वव्या विलेलाहिया) सर्नद्रव्य विशेषाधिक (सव्वपएसा अणंतगुणा) समस्तप्रदेश अनन्तगुणा (सन्दा पज्जवा अणंतगुणा) सर्व पर्याय अनन्तगुणा हैं। ___ टीकार्थ-अव अलोक आदि के चरमाचरम आदि का अल्प बहुत्व प्रलपित करने के लिए कहते हैं श्रीगौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! अलोक के अचरम, चरमों, चरमान्तप्रदेशों और अचरमान्तप्रदेशों में से द्रव्य की अपेक्षा, प्रदेशों की अपेक्षा तथा द्रव्य-प्रदेशों की अपेक्षा कौन किससे अल्प है, बहुत है, तुल्य है अथवा विशेषाधिक हैं ? प्रदेश सध्यातमा छ (अलोगस्स अचरमत पएसा अणंतगुणा) 31। अयमान्त प्रदेश मन्नत छे (लोगस्स य अलोगस्स य) as मने मसेन (चरम तपएसा य अचरमतपएसाय दोवि) २२मांत म भयरमांत प्रदेश मन्ने (विसेसाहिया) विशेषाधि: छे (सव्वव्वा' विसेसाहिया) सब द्रव्य विशेषाधि४ छ (सव्व पएसा अणंतगुणा) समस्त प्रदेश अनन्त गए। छ (सव्व पज्जवा अणंतगुणा) सर्व पर्याय मनrding छे ટીકાર્થ – હવે અલક આદિના ચરમાં ચરમ આદિના અલપ બહુત્વ પ્રરૂપિત કરવાને માટે કહે છે – શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે- હે ભગવન ! અલકના અચરમ, ચર, ચરમાન્ત પ્રદેશે અને અચરમાન્ત પ્રદેશમાંથી દ્રવ્યની અપેક્ષાએ પ્રદેશની અપેક્ષાએ તથા દ્રવ્ય પ્રદેશેની અપેક્ષાએ કોણ કોનાથી અલ્પ છે, તુલ્ય છે. અથવા વિશેષાધિક છે? प्र० १४
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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