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________________ १०४ प्रतापनास्त्र देशा-विशेषाधिकाः, लोकस्य अचरमान्तप्रदेशाः असंख्येयगुणाः, अलोकस्य अचरमान्तप्रदेशा अनन्तगुणाः, लोकस्य चालोकस्य च चरसान्तप्रदेशाचाचरमान्तप्रदेशाश्च हयेऽपि विशेषाधिकार, द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया सर्वस्तोकं लोकालोकल्य एकामेकम् अचरम , लोइस्य चरमाणि असंख्येयगुणानि, अलोकस्य चरमाणि विशेपाधिकानि, लोकस्य चालोकस्य चाचरमन चरमाणि च द्वयान्यपि विशेषाधिकानि, लोकस्य चरमान्तप्रदेशा असंख्येयगुणाः, अलोकस्य च चरमान्तप्रदेगा विशेपाधिकाः, लोकस्य अचरमान्तप्रदेशाः, असंख्येयगुणाः, अलोकस्य अचरमान्तचरमान्न प्रदेश हैं (अलोगस्त चरनंतपदेना वितेसाहिया) अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं (लोगस्स अचर मंतपणसा असंखेज्जगुणा) लोक के अचरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणा हैं (अलोचस्स अचरमंतपरसा अर्णतगुणा) अलोक के अचरमान्तप्रदेश अनन्तगुणा हैं । (लोगत्स य अलोगस्स य चरमंतपदेसा य अचरसंतपदेसा य दोवि विसेसाहिया) लोक और अलोक के चरमान्तप्रदेश और अचरमान्तप्रदेश दोनों विशेषाधिक हैं (दब्वट्ठपएसट्टयाए सव्वत्थोवे लोगा. लोगस्स एगमेगे अचरमे) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा सब से कम लोकअलोक का एक-एक अचरम है (लोगस्स चरभाइं असंखेनगुणाई) लोक के चरम असंख्यातगुणा हैं (अलोगस्स चरपाई विसेसाहियाई) अलोक के चरस विशेषाधिक हैं (लोगस्स य अलोगस्स य) लोक और अलोक का (अचरमं) अचरम (चरमाणि य) और चरमाणि (दोवि विसेसाहियाई) दोनों विशेषाधिक हैं (लोगस्स चरमंतपएसा असंखेज्जगुणा) लोक के चरमान्तप्रदेश असंख्यातगुणा हैं (अलोगस्स य चरमंतपएसा विसेसाहिया) अलोक के चरमान्तप्रदेश विशेषाधिक हैं (लोगस्स अचरमंतपदेसा असंखेज्जगुणा) लोक के अचरमान्तप्रदेश असंचरमंतपदेसा) प्रशानी अपेक्षा पाथी मे.छवन य२मान्त प्रदेश छ (अलोगरस चरमंतपदेसा विसेसाहिया) भनी २२मान्त प्रदेश विशेषाधि छे (लोगस्स अचरमंतपएसा असंखेज्जगुणा) ना भयरमन्त प्रदेश असभ्यातमा छ (अलोगस्स अचरमंतपएसा अर्णतगुणा) मोना अयरान्त प्रदेश अनन्तगए। छे (लोगस्स य अलोगस्स य चरमंतपढेमा य अचरमंतपदेसा य दोवि विसेसाहिया) al भने माना यभान्त प्रदेश अने. मयभान्त प्रदेश मन्ने विशेषाधि४ छ (दवट्ठपएसट्रयाए सव्व स्थोवे लोगालोगस्स एगमेगे अचरमे) द्रव्य भने प्रशानी अपेक्षामे मधाथी माछा - मसन मे से अयरम छ (लोगत्स चरमाइं अखेजगुणाई) ना यरभ असभ्यात गा छे (अलोगस्स चरमाइं विसेसाहियाई) मना ५२म विशेषाधि छे (लोगरस य अलोगस्स य) स भने माना (अचरन) भयरम (चरमाणिय) भने यमाणि (दोवि विसेसाहियाइ) भन्ने विशेषाधिन छ (लोगस्स चरमंतपएसा असंखेज्जगुणा) ना यभा- प्रदेश अध्यातमा छे (अलोगम्स य चरम तपएसा विसेसाहिया) मसान। यभान्त श विशेषाधि४ छ (लोगस्स अचरमंतपएसा असंखेज्जगुणा) वन मन्यमान्त
SR No.009340
Book TitlePragnapanasutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1977
Total Pages881
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size64 MB
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