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प्रमेयदोधिनी टीका पद ६ सू.२ विशेपोपपातनिरूपणम् गौतम ! अनुसमयम् अविरहिताः उपपातेन प्रज्ञप्ताः एवम् अप्कायिकानामपि तेजाकायिकानामपि, वायुकायिकानामपि, वनस्पतिकायिकानामपि अनुसमयम् अविरहिताः उपपातेन प्रज्ञप्ताः, द्वीन्द्रियाःखलु भदन्त ! कियन्तं कालं विरहिताः उपपातेन प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्येन एकं समयम् उत्कृष्टेन अन्त मुहर्तम्, एवं त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियाः, संमूर्छिम पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः खलु भदन्त कियन्तं कालं विरहिता उपपातेन प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्येन एक समयम्, उत्कृप्टेन
(पुढधिकाइयाणं भंते ! केवयं काल विरहिया उववाएणं पण्णत्ता हे भगवन । पृथिवीकाधिक कितने काल तक उपपात से रहित कहे हैं? (गोयमा ! अणुलमययविरहियं उववाएणं पण्णत्ता) हे गौतम ! प्रत्येक समय विना विरह के उपपात कहा है (एवं आउकाइयाण वि) इसी प्रकार अप्कायिकों का भी (ते उकाइयाण वि) तेजस्कायिकों का भी (वाउकाइयाण वि) वायुकायिकों का भी (वणस्सइकाइयाण वि) वनस्पतिकाथिकों का भी (अणुसमय) प्रतिसमय (अविरहिया) विरह से रहित (उच्चाएणं )उपपात ले (पण्णता) कहे हैं
(वेइंदिया ण भते! केवइयं काल विरहिया उववाएणं पण्णता?) हे भगवन् । द्वीन्द्रिय जीव कितने काल तक उपपात से रहित कहे है ? (गोयमा ! जहण्णेणं एग समय, उक्कोलेणं अंतोमुद्धत्तं) हे गौतम ! जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तईहर्स तक (एवं तेइंदिय चरिंदिया इसी प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय संकुच्छिमपंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! केवइयं काल विर
(पुढविकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ) 3 लगवन् ! पृथिवीय ट। समय सुधी ५पातथी २हित ४ा छ ? (गोयमा ! (अणुसमयमविरहियं उववाएणं पण्णत्ता ?) ॐ गौतम! प्रत्ये४ समय वि२७ विनान। 6५पात ४wो छे (एवं आउकाइयाणं वि) से प्रारे २५४ायिन पर (तेउकाइयाण वि) ते१२४ायिटीना ५ (वाउकाइयाणं वि) वायुयाना ५ (वण्णस्सइ काइयाणं वि) वनस्पतियिोना ५९ (अणु समय) प्रति समये (अविरहिया) वि२६ २डित (उववाएणं) ७५पातथी (पण्णत्ता) ४६॥ छ।
(वेइंदियाणं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पण्णत्ता ?) भगवन ! दीन्द्रिय ७५ टक्षा सुधी ६५पातथी २हित ४८ छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं पगं समय, उनोसेणं अंतोमुहुत्त) हे गौतम ! १५न्य मे समय, हट अन्तभुत सुधी (एवं तेइंदिय चरिंदिय) मे रीते श्रीन्द्रिय, सतुरिन्द्रिय