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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ५ सू.१४ द्विप्रदेशिकपुद्गलपर्यायनिरूपणम् ८३७ प्रदेशाः परिवर्द्धिप्यन्ते, जघन्यस्थितिकानां भदन्त ! संख्येयप्रदेशिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ता पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते- जघन्यस्थितिकानां संख्येयप्रदेशिकानामनन्ता, पर्यवाः प्रज्ञाताः ? गौतम ! जयन्यस्थितिकः संख्येयप्रदेशिकः स्कन्धो जघन्यस्थितिकस्य संख्येयप्रदेशिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यातया तुल्यः, प्रदेशार्थतया द्विस्थानपतितः अवगाहनार्थतया द्विस्थानपतितः भी इसी प्रकार (नवरं ठिईए चउट्ठाणवडिप) विशेप यह कि स्थिति से चतु:स्थानपतित है (एवं जाव दसपएसिए) इसी प्रकार यावत् दश प्रदेशी (नवरं पएलवुड्डी कायव्या) विशेषता यह कि प्रदेशों की वृद्धि करनी चाहिए (ओगाहणट्टयाए तिलु वि गमेसु जाव दसपएसिए एवं) अवगाहना के तीनों गमों में दशप्रदेशी स्कंध तक ऐसा ही कहना चाहिए (पएसा परिवद्रिज्जति) प्रदेशों की वृद्धि हो जाती है (जहण्णठिइयाणं भंते ! संखेज्जपएसियाणं पुच्छा ?) हे भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कंधों के पर्याय कितने कहे हैं ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणठेणं भाते ! एवं वुच्चइ-जहण्णठियाणं संखेजपएसियाण अणता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जधन्यस्थितिक संख्यातप्रदेशी स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! जहण्णठिइए संखेज्जएसिए खंधे जहण्णठिझ्यस्स संखिज्जपएसियस्स खंधस्स व्वयाए तुल्ले) हे गौतम ! जघन्य स्थिति वाला मधन्य मनुष्ट अर्थात् मध्यम स्थितियाणा ५ से प्रा३ (नवरं ठिहए चउट्राण वडिए) विशेष से स्थितिथी यतु.स्थान पतित छे (ग्यं जाव दस पापसिए) से प्रभारे यावत् ६२ प्रदेशी (नवरं पएस युड्ढि कायवा) विशेषता से प्रदेशोथी वृद्धि ४२वी नये (ओगाहणद्वयाग तिसु वि गमेसु जाव दस पएसिए एवं) अवगाहनाना त्राणे गभामा ६श प्रदेशी २५ सुधी ये ५ नो (पएसा परिवढिम्जंति) प्रदेशानी वृद्धि य तय (जहण्णठिइयाण भंते । संखेज्जपरसियाणं पुन्छा ?) भगवन न्य स्थितियाणा सध्यात अशी २४न्धाना पर्याय असा हा छ ? (गोयमा । अणता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम । अनन्त पर्याय ह्या छ (से केणणं भंते ! एवं चइ-जहण्णठिइयाणं संखेजपएसिण अणता पज्जवा पण्णत्ता ?) मापन् । કારણે એમ કહેવાય છે કે જઘન્ય સ્થિતિક સ ખ્યાત પ્રદેશ કન્વેના અનન્ત पर्याय ४६॥ छ ? (गोयमा ! जहण्णठिहए संखजपएसिए सन्ये जहण्णाठियस्स संखिज्जपएसियस संधस्स दव्यद्वयाए तुल्ले) 3 गोतम! पन्य विनिमय સંખ્યાત પ્રદેશી કન્ધ બીજા જઘન્ય રિસ્થતિવાળા સંખ્યાત પ્રદેશો અન્યથી
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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