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________________ ८६८ प्रशापनासूत्रे स्थित्या तुल्यः वर्णादिभिश्चतुःस्पर्शी श्च पट्स्थानपतितः एवमुत्कृष्टस्तिकोऽपि अजघन्यानुत्कृष्टस्थितिकोऽपि एवञ्चेव, नवरं स्थित्या चतुःस्थानपतितः, जघन्यस्थितिकानाम् असंख्येयप्रदेशिकानाम् पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते जघन्य स्थितिकानामसंख्येयप्रदेशिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम : जघन्यस्थितिकः असंख्येयप्रदेशिको संख्यातप्रदेशी स्कंध दूसरे जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कंध से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य (पएसट्टयाए दुट्ठाणवडिए) प्रदेशों की दृष्टि से द्विस्थानपतित (ओगाहणट्टयाए दुट्टाणवडिए) अवगाहना से द्विस्थानपतित (ठिईए तुल्ले) स्थिति से तुल्य (वण्णाइ चउफासेहि य छठाण वडिए) वर्णादि से तथा चार स्पर्शो से षट्स्थानपतित है (एवं उक्कोसठिइए वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाला भी (अजहण्णमणुक्कोसठिइए एवं चेव) मध्यम स्थिति वाला भी इसी प्रकार (नवरं ठिईए चउट्ठाणवडिए) विशेष यह कि स्थिति से चतुःस्थानपतित है (जहण्णठिइयाणं असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा) हे भगवन् ! जघन्य स्थितिवाले असंख्यातप्रदेशी स्कंधों के कितने पर्याय है ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-जहण्णठिइयाणं असंखेज्जपएसियाणं अर्थता पज्जवा पण्णत्ता) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्यस्थितिक असंख्यातप्रदेशी स्कंधों के अनंत पर्याय कहे हैं। (गोयमा ! जहण्णठिइए असंखेज्जपएसिए जहण्णठिझ्यस्स असंखेज्जद्रव्यनीष्टिये तुल्य छ (पएसट्टयाए दुदाणवडिए) प्रशानी हष्टिये विस्थान पतित (ठिईए तुल्ले) स्थितिथी तुल्य (वण्णाइ चउफासेहिय छट्ठाणवडिए) पहिथी तथा या२ २५थी ५८२थान पतित छे (एवं उक्कोसठिइए वि) से अरे ष्ट स्थिति पर (अजहण्णमणुकोसठिइए एवं चेव) मध्यम स्थितिवाणा ५५ मे १२ (नवरं ठिईए चउट्ठाणवडिए) विशेष से छ કે સ્થિતિથી ચતુઃસ્થાન પતિત છે (जहण्णठिइयाणं असंखेज्जपएसियाणं पुच्छा ?) भगवन् ! धन्य स्थितिवाणा असण्यात प्रवेशी स्न-धोना टसा पर्याय छ ? (गोयमा । अणंता पज्जवा पण्णत्ता) 3 गौतम । मनन्त पर्याय ४ा छे (से केणदेणं भंते ! एवं वुचइ-जहण्णठिइयाणं असंखेजपएसियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) 3 ભગવન્! શા કારણે એવું કહેવાય છે કે જઘન્ય સ્થિતિક અસંખ્યાત પ્રદેશી पाना मनन्त पर्याय ४ा छ (गोयमा ! जहण्णठिइए असंखेज्जपएसिए
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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