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________________ प्रमेययोधिनी टीका पद ५ सू.१४ द्विप्रदेशिकपुद्गलपर्यायनिरूपणम् ८३५ स्थितिकस्य परमाणुपुदलस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थ तया तुल्यः, अबगाहनार्थतया तुल्यः, स्थित्या तुल्यः, वर्णादिभिः द्विस्पर्शाभ्याञ्च पदस्थानपतितः, एवमुत्कृष्ट स्थितिकोऽपि, अजघन्यानुत्कृष्टस्थितिकोऽपि एवञ्चैव, नवरम्-स्थित्या चतुःस्थानपतितः, जयन्यस्थितिकानां हिप्रदेशिकानां पृच्छा गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यस्थिपज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय हैं (से केणटेणं भते । एवं वुच्चइ-जहण्णठिइयाणं परमाणुपुग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि जघन्य स्थिति वाले परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं ? (गोयमा ! जहणठिइए परमाणुपोद्गले जहण्णाठिइयस्स परमाणुपोद्गलस्स व्वयाए तुल्ले) गौतम ! जघन्य स्थिति वाला परमाणुपुद्गल दूसरे जघन्य स्थिति वाले परमाणुपुगल से द्रव्य की दृष्टि से तुल्य (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रदेश से तुल्य (ओगाहणयाए तुल्ले) अवगाहना से तुल्य (ठिहए तुल्ले) स्थिति से तुल्य (वण्णाइदुफासेहि य) वर्णादि तथा दो स्पर्शे से (छट्ठाणवडिए) षट्स्थानपतित (एवं उक्कोसठिइए वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाला भी (अजहण्णमणुक्कोसठिइए वि एवं चेव) सध्यम स्थिति वाला भी इसी प्रकार (नवरं ठिईए चउढाणवडिए) विशेष यह कि स्थिति से चतुस्थानपतित है (जहणठियाणं दुपएसियाणं पुच्छा ?) जघन्य स्थिति वाले विप्रदेशी स्कंधो के पर्यायों की पृच्छा ? (गोयसा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) मनन्त पर्याय छ (से केणटेणं भते ! एवं वुच्चई जहण्णठिइयोण परमाणुपुग्गलाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) 3 भगवन् । २॥ २0 मेभ उपाय छ धन्यस्थितिवाणा परमाणु सोना मनन्त पर्याय छे ? (गोयमा । जहण्णठिईए परमाणुपोग्गले जहण्णठिइयस्स परमाणुपोग्गलस्स दबया तुल्ले) हे गौतम धन्य સ્થિતિવાળા પરમાણુ પુદ્ગલ બીજા જઘન્ય સ્થિતિવાળા પરમાણુ પુદ્ગલથી द्र०यनी हटिये तुल्य (पएसद्वाए तुल्ले) प्रशायी तुल्य (ओगाहणट्टयाए तुल्ल) भवानाथी तुक्ष्य (ठईए. तुल्ले) स्थितिथी तुभ्य (वण्णाई दुफासेहिय) पाथी तथा रे पशथी (छडाणवडिए) ५स्थान पतित (वं उकोसठिइए वि) सेवी शत घट स्थिति पर (अजहण्ण मणुफोसठिए वि एवं चेत्र) मध्यम अपना पY से शत (नवरं ठिदए चट्टाणवडिए) विशेष એ કે સ્થિતિથી ચતુ સ્થાન પતિત છે (जहण्णठिझ्याण दुपएसियाणं पुन्छा १) धन्य स्थितिमा विदेशी २४ धोना पायानी छ ? (गोयमा ! अणंता पज्जया पण्णत्ता) ॐ गौतम !
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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