________________
८३४
प्रज्ञापनासूत्रे कोऽनन्तप्रदेशिकः स्कन्धः अजघन्यानुत्कृष्टावगाहनकस्य अनन्तप्रदेशिकस्य स्कन्धस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया पट्स्थानपतितः, अवगाहकार्थतया चतु:स्थानपतितः, स्थित्या चतु:स्थानपतितः, वर्णादिभिरष्टस्पशैः पदस्थानपतितः, जघन्यस्थितिकानां भदन्त ! परमाणुपुद्गलानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यस्थितिकानां परमाणुपुदगला. नामनन्ताः, पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जयन्यस्थितिकः परमाणुपुद्गलो जघन्यकी पृच्छा ? (गोयमा ! अणता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केणटेणं भते! एवं बुच्चइ अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगाणं अणंतपएसियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! किसकारण ऐसा कहा कि मध्यम अवगाहना वाले अनन्तप्रदेशी स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे है ? (गोयसा! अजहण्गमणुक्कोसोगाहणए अणंतपएसिए खंधे अजहण्णमणुक्कोसोगाहणगस्त अणंतपएसियस्स खंधस्स दव्वयाए तुल्ले) मध्यम अवगाहना वाला अनन्तप्रदेशी स्कंध मध्यम अवगाहना वाले अनन्त प्रदेशी स्कंध से द्रव्य से तुल्य (पएसटुंयाए छटाणवडिए) प्रदेशों से षट्स्थानपतित (ओगाहणट्टयाए चउहाणवडिए) अवगाहना से चतुस्थानपतित (ठिईए चउट्ठाणवडिए) स्थिति से चतुस्थानपतित (वण्णाइ अट्ट फासेहिं छट्ठाणवडिए) वर्णादि से तथा आठ स्पर्शो से षट्स्थानपतित _ (जहण्णठियाणे भंते ! परमाणुपोग्गलाणं पुच्छा ?) हे भगवन् ! जघन्य स्थितिक परमाणुपुद्गलों के कितने पर्याय हैं ? (गोयमा ! अणंता (गोयमा । अणता पज्जव। पण्णत्ता) में गौतम । मनन्त पर्याय ४ा छ (से केणटेणं भंते । एवं बुच्चइ-अजहण्णमणुकोसोगाहणगाणं अणंतपएसियाण अर्णता पज्जवा पण्णत्ता ?) भगवन् । ४२ यु भध्यम समान अनन्त प्रशी २४न्धान। मनन्त पर्याय द्या छ ? (गोयमा। अजहण्ण. मणुकोसोगाणए अणतएपसिए खंधे अजहण्णमणुकोसोगाहणगरस अणंतएपसियस्स खंधस्स दवट्ठयाए तुल्ले) मध्यम मानावा मनन्त प्रशी २४५ मध्यम मवाना मनन्त अशी २४थी द्रव्य दृष्टि तुक्ष्य (पएसट्टयाए छट्ठाणवडिए) अशी ५८स्थान पतित (ओगाहणद्वयाए चट्टाणवडिए) नाथी यतु स्थान पतित (ठिईए चउढाणवडिए) स्थितिथी यतु स्थान पतित (वण्णाइ अट्ठफासेहिं छट्ठाण वडिए) पहिथी तथा 18 २५ थीषट-थान पतित
(जहण्णठिइयाणं भंते । परणाणुपोग्गलाणं पुच्छा ?) मापन I धन्य स्थिति। ५२मा पुगतान टवा पर्याय छ १ (गोयमा ! अणता पज्जा पण्णत्ता) ॐ गौतम !