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________________ ७८८ प्रधापनास्त्र तुल्यः प्रदेशार्थतया तुल्यः अवगाहनार्थतया स्याद्धीनः, स्यात्तुल्यः, स्यादभ्यधिकः, यदा हीनः, प्रदेशहीनः अथाभ्यधिका-प्रदेशाभ्यधिकः, स्थित्या चतुः स्थानपतितः, वर्णादिभिः, उपरितनैश्चतुःस्पर्शी श्च पट्स्थानपतितः, एवं त्रिप्रदे शिकोऽपि, नवरम् अवगाहनार्थतया स्याद्धीनः, स्यात्तुल्यः स्यादभ्यधिकः, यदा हीनः प्रदेशहीनो वा, द्विपदेशहीनो वा, अथाभ्यधिकः प्रदेशाभ्यधिको वा, द्वि प्रदेशाभ्यधिको वा, एवं यावद्-दशप्रदेशिकः, नवरम्-अवगाहनाया, प्रदेशपरिद्विप्रदेशी हि प्रदेशी से तुल्य (ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सियअन्भहिए) अवगाहना से कदाचित् होन, कदाचित् तुल्य, कदाचित् अधिक (जड़ हीणे पएसहीणे) अगर हीन हो तो एक प्रदेशहीन होता है (अह अभहिए पएसमाहिए) यदि अधिक हो तो एक प्रदेश अधिक होता है (ठिईए चउहाणवडिए) स्थिति से चतुःस्थानपतित होता है (वन्नाईहिं उवरिल्लेहिं चउफासेहि य छट्ठाणवडिए) वर्ण आदि से और उपर्युक्त स्पर्शो से षट्स्थानपतित है _ (एवं तिपएसे वि) इसी प्रकार त्रिप्रदेशी भी (नवरं) विशेष (ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अम्भहिए) अवगाहना से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य, कदाचित् अधिक होता है (जइ हीणे पएसहीणे वा, दुपएसहीणे वा) यदि हीन हो तो एक प्रदेश से हीन या दो प्रदेशों से हीन होता है (अह अन्भहिए पएसमन्भहिए वा दुपएस मन्भहिए वा) अगर अधिक हो तो एक प्रदेश अधिक या दो प्रदेश अशी २४-धोना मनन्त पर्याय ४ा छ (गोयमा । दुपएसिए दुपएसियस्स दव्वद्वयाए तुल्ले) गौतम | विदेशी विदेशीथी द्रव्यनीष्टिये तुल्य छ, (पएसट्टयाए तुल्ले) प्रशाथी तुल्य (ओगाहणद्वयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अभहिए) साईनाथी ४ायित् डीन, हाथित् तुल्य, हाथित् अधि४ (जइ हीणे पएस हीणे) २५॥२ डीन डाय तो मे प्रदेश डीन गने छ (अह अभहिए पएस मन्भहिए) यहि म४ि सय तो मे४ प्रदेश मधि४ थाय छ (ठिइए चउद्वाण वडिए) स्थितिथी यतु स्थान पतित थाय छे (वन्नाईहि उवरिल्लेहि-चउफासेहिय छद्राणवडिए) व माहिथी मने उपयुत २५थी ५८स्थान पतित थाय छ (एवं तिपएसे वि) से शत विदेशी पY (नवर) विशेष (ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अभहिए) मगाउनाथी ४ायित् डीन, हायित् तुझ्य, ४ायितू अधि४ थाय छ (जइ हीणे पएस होणेवा, दुपएस हीणे वा) ने डीन थाय । से प्रदेश डीन २०१२ में प्रदेशाथी डीन थाय छे. (अह अब्भहिए पएसमभहिए वा दुपएसमभहिए वा) २२ मपि य तो मे प्रदेश अघि २२ में
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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