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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ५ सू.०१३ परमाणु पुद्गलपर्यायनिरूपणम् ७८९ वृद्धिः कर्तव्या, यावद् दशप्रदेशिकः, नवरम् नव प्रदेशहीन इति, संख्येयप्रदेशिकानां पृच्छा, गौतम ! अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-संख्येयप्रदेशिकानां अनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! संहियेयप्रदेशिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया स्याद्धीनः, स्यात्तुल्यः, स्यादभ्यधिकः यदा हीनः संख्येयभागहीनो वा संख्येयगुणहीनो वा, अथाभ्यधिकः एवञ्चव, अवगाहनार्थतयापि द्विस्थानपतितः स्थित्या चतुःस्थानपतितः अधिक होता है (एवं जाव दसपएलिए) इसी प्रकार यावन दशप्रदेशी (नवरं नवपएसहीणत्ति) विशेष यह कि वह नौ प्रदेशों से हीन तक होता है ___ (संखेज्जपएसियाणं पुच्छा ?) संख्यात प्रदेशी स्कंधों की पृच्छा ? (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (से केण?णं भंते! एवं उच्चइ-संखिज्जपएसियाणं अणंता पज्जवा एण्णत्ता) हे भगवन किस कारण ऐसा कहा कि संख्यातप्रदेशी स्कंधों के अनन्त पर्याय कहे हैं (गोयमा ! सखेज्जपएसिए संखेज्जपएसियस्स दन्चटयाए तुल्ले) हे गौतम ! संख्यातप्रदेशी स्कंध संख्यातप्रदेशी स्कंध से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है (पएसट्याए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अभहिए) प्रदेशों की दृष्टि से हीन हो सकता है, तुल्य हो सकता है, अधिक हो सकता है (जह हीणे संखेज्जभाग हीणे वा संखेज्जगुणहीणे चा) यदि हीन है तो संख्यातभाग हीन या संख्यात गुण हीन होता है (अह अन्भहिए एवं चेव) यदि अधिक हो तो इसी प्रदेश मधि४ थाय छ (एवं जाव दस पएसिए) से शत यापत् १२ अशी (नवरं नव पएसहीणत्ति) विशेष मे छे । ते न4 प्रशाथी डीन सुधी थाय छे. (संखेज्जपएसियाणं पुच्छा ?) सध्यात अशी धोनी । (गोयमा ! अर्णता पज्जवा पण्णत्ता) गौतम ! मनन्त पर्याय ४ा छ (से केणट्रेणं भंते । एवं वुचइ-संखिज्जपएसियाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) लगवन् । ॥ २ हुंछ सच्यात अशी २४न्योन। मनन्त पर्याय ४ा छ ? (गोयमा ! संखेज्जपएसिए संखेजपएसियस दवट्ठयार तुल्ले) गौतम ! यात अशी २४.५ सयात प्रदेशी २४न्थी द्रव्यनी अपेक्षाये तुल्य छ (पएसयाए सिय होणे सिय तुल्ले सिय अन्भहिए) प्रशानी मे डीन यश छ, तक्ष्य यश छे. अधि४ शछे (जइ होणे संखेज भागहीणे वा सखेज्जगुण हीणे वा) ले डीन जाय तो ज्यात ला डीन पा सभ्यात गुपडीन याय छ. (अह अभहिए एवं चेव) ले गधि डाय तो -सात लाम
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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